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________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी १४ __ स्वामीजी ने आगमिक विचारधारा के अनुसार काल को स्वतन्त्र द्रव्य माना है। ऊपर एक जगह (पृ० ६७ टि० २ अनु० २) हम इस बात का उल्लेख कर आये हैं कि छह द्रव्यों में जीव को छोड़ कर बाकी पाँच अजीव हैं। काल इन अजीव द्रव्यों में से एक है। अचेतन पदार्थ है। अजीव पदार्थों के जो रूपी अरूपी ऐसे दो भेद मिलते हैं उनमें काल अरूपी है अर्थात् उसके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श नहीं-अमूर्त है। (२) काल के अनन्त द्रव्य हैं : यह बताया जा चुका है कि संख्या की अपेक्षा से जीव अनन्त कहे गये हैं। धर्म, अधर्म और आकाश की संख्या का उल्लेख स्वामीजी ने नहीं किया, पर वे एक-एक व्यक्ति रूप हैं। पुदगल अनन्त हैं। यहाँ काल पदार्थ को संख्यापेक्षा से अनन्त द्रव्य रुप कहा है अर्थात् काल द्रव्य एक व्यक्ति रूप नहीं संख्या में अनन्त व्यक्ति रूप है। सर्व द्रव्यों को संख्या-सूचक निम्न गाथा बड़ी महत्त्वपूर्ण है : धम्मो अहम्मो आगासं दबं इक्किक्कमाहियं । अणन्ताणि य दब्वाणि कालो पुग्गल-जन्तवो।। इस विषय में दिगम्बर आचार्यों का मत भिन्न है। उनके अनुसार कालाणु संख्या में लोकाकाश के प्रदेशों की तरह असंख्यात हैं'। हेमचन्द्र सूरि का अभिमत भी इसी प्रकार का लगता है। १. पञ्चास्तिकायः १.२४ : ववगदपणवण्णरसो ववगदददोगंधअट्ठफासो य। अगुरुलहुगो अमुत्तो वट्टणलक्खो च कालोति।। २. देखिये पृ० ४३ : (८) ३. उत्तरा० २८.८ ४. द्रव्यसंग्रह २२ : लोयायासपदेसे इक्केक्के जे ठिया हु इक्केक्का। रयणाणं रासीमिव ते कालाणू असंखदव्वाणि ।। ५. नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : सप्ततत्त्वप्रकरणम् (हेमचन्द्र सूरि) : लोकाकाशप्रदेस्था, मिन्नाः कालाणवस्तु ये। भावानां परिवर्ताय, मुख्यकालः सा उच्यते।।२।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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