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________________ & 983 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण पंचपरमेष्ठी वर्ण (रंग) शक्ति केन्द्र प्रतीक रंग न्यूनता का प्रभाव - अरिहन्त सिद्ध श्वेत लाल ज्ञान दर्शन स्फटिक बाल रवि आचार्य उपाध्याय पीला विशुद्धि दीपशिखा नीला आनन्द नभ काला शक्ति कस्तूरी अस्वास्थ्य प्रसाद, विक्षिप्तता बौद्धिक ह्रास क्रोध प्रतिरोध शक्ति साधु पीत वर्ण या पीला रंग मिट्टी तत्त्व के निर्माण में सहायक है। जल तत्त्व के लिए ऊर्जा को श्वेत रूप धारण करना होता है। अग्नि तत्त्व के लिए लाल रंग आवश्यक है। नीला रंग वायु तत्त्व का जनक है। आकाश तत्त्व के लिए भी नील वर्ण आवश्यक है। राग-द्वेष को स्थिर करके ही जल तत्त्व को नियन्त्रित किया जा सकता है। जल तत्त्व से हमारा मूत्र ही नहीं अपितु रक्त एवं शरीर की सारी इच्छाएं चालित होती हैं । णमो अरिहंताणं में श्वेत तरंग है । अ और ह में जल तत्त्व है। र में अग्नि तत्त्व है। जल और अग्नि से हम गला, नाभि, हृदय को स्वच्छ-स्वस्थरख सकते हैं। इन अंगों की स्वच्छता श्वेतवर्ण बर्धक होती है। रंग के बिना कोई वस्तु दिखाई नहीं देती। रंगों के द्वारा हमारी बीमारी का पता चलता है। डॉ. बीमार व्यक्ति की आंख, जीभ, पेशाब, थूक, क्यों देखता है ? इनके रंगों से वह रोग को तुरन्त जान लेता है। पृथ्वी तत्त्व का पीला रंग शरीर में व्याप्त है । इसकी कमी से रुग्णता आती है। किन्तु यदि मूत्र में पीलापन हो तो वह रोग का कारण होता है। मत्र का वर्ण जल तत्त्व के कारण श्वेत होना चाहिए। सफेद रंग अरिहन्त का है। एक श्वेत रंग रोग का है और एक श्वेत रंग स्वास्थ्य का है। इस शरीर को तुच्छ, हेय और नाशवान् कहकर उपेक्षा करने से हम णमोकार मन्त्र को नहीं समझ सकते। शरीर की समझ और स्वास्थ्य से हम संसार को समझ सकते हैं।
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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