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________________ णमोकार मन्त्र और रंग विज्ञान 2978 चप हो जाती है और जो गर्म हो जाती है वो टिक जाती है। जब सिर्फ आक्सीजन रह जाती है तो उसमें काटने की शक्ति बढ़ जाती है। इस दुनिया में साइकिक (मानसिक इच्छा द्वारा) सर्जरी हो रही है इसका अर्थ है-मानसिक इच्छा द्वारा आपरेशन करना। पेट खोल देना, पेट बन्द कर देना। अपने पर भी तथा दूसरे पर भी यह की जा सकती है। णमोकार मन्त्र का मूलाधर ध्वनि है। ध्वनि ही प्रकृति की ऊर्जा का मूल स्वरूप है। इस प्रकृति में जो मूलभूत शक्ति है उसके अनन्त रूप हैं। वे बनते हैं, स्थिर रहते हैं और नष्ट होते हैं । स्पष्ट है कि प्रकृति ध्वनि के माध्यम से प्रकट होती है। ध्वनि प्रकाश में ढलकर रंग और आकार ग्रहण करती है। महामन्त्र का सस्वर जाप या उच्चारण करतेकरते शरीर में अपेक्षित रंग और आकृतियों की अवतारणा होगी। ध्वनि तरंग धीरे-धीरे विद्युत् तरंगों में बदलेगी और फिर यह विद्युत तरंग रंग और आकृति में ढलेगी ही। इसके बाद भक्त स्वयं की पूर्णता का साक्षात्कार कर सके ऐसी क्षमता की स्थिति में पहुंच जाता है। महामन्त्र में केवल तीन पद हैं-महामन्त्र णमोकार की प्रमुखता हैप्राक्रतिक ऊर्जा का जागरण । प्रकृति के अपने क्रम में तीन स्थितियां हैं-उत्पत्ति, स्थिति, और विनाश । णमोकार मन्त्र में णमो उवज्झायाणं पद उत्पत्ति-ज्ञान, उत्पादन का है। णमो सिद्धाणं पद स्थिति का है। णमो अरिहन्ताणं पद नाश-कर्मक्षय का है। आचार्य और साधु परमेष्ठी उपाध्याय में ही गभित हैं। अतः इस प्रकृति और ऊर्जा के स्तर पर मन्त्र के तीन ही पद बनते हैं। उत्पत्ति, स्थिति और व्यय (नाश) और पूनः-पुनः यही क्रम-ये तीन अवस्थाएं ऊर्जा की हैं। मिट्टो, पानी, हवा, अग्नि ये सब ऊर्जा के क्षेत्र है। जब ऊर्जा ठोस (Solid) होती है तो मिट्टी बन जाती है। तरल होने पर जल और जब जलती है तो अग्नि बनती है । बहने पर वायु बनती है। जब केवल ऊर्जा ही-(ऊर्जा मात्र ही) रह जाती है तो वह आकाश हो जाती है। इन पांचों तत्त्वों के अलग रंग हैं। इनके अपने-अपने केन्द्र हैं। इनकी अपनी प्रतीकात्मकता है। इन रंगों की मानव शरीर में न्यूनता का गहरा प्रभाव पड़ता है। ये रंग, शक्ति केन्द्र, प्रतीक, और इनकी न्यूनता को पंच परमेष्ठी के साथ जोड़कर देखने से पूरा चित्र प्रस्तुत हो जाता है। सार चित्र इस प्रकार है
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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