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णमोकार मन्त्र और रंग विज्ञान - 992
संसार को समझकर उसे नियन्त्रित कर सकते हैं और फिर आत्मकल्याण की सहजता को पा सकते हैं।
णमोकार विज्ञान, अरिहन्त विज्ञान या जैन धर्म शक्तिशालियों का धर्म है, कमजोरों का नहीं। परम्परा और मशीन वन जाने से इसकी ऊर्जा और प्राणवत्ता तिरोहित हो गयी है। आत्मा और शरीर के सम्बन्ध को सन्तुलित दृष्टि से समझकर ही चलना श्रेयस्कर होगा।
निष्कर्ष-महामन्त्र के रंगमूलक अध्ययन से अनेक प्रकार के लाभ हैं। 1. प्रकृति से सहज निकटता एवं स्वयं में भी प्रकृति के समान
विविधता, एकता और व्यापकता की पूर्ण सम्भावना बनती है। 2. शब्द से शब्दातीत होने में रंग सहायक हैं। अनुभूति की सघनता, में भाषा लुप्त हो जाती है। धीरे-धीरे आकृति भी विलीन हो
जाती है। ध्वनि, प्रकाश और चैतन्य ज्योति की यात्रा है। 3. रंग तो साधन है-सशक्त साधन । सिद्धि की अवस्था में साधन
स्वत: लीन हो जाते हैं। 4. तीर्थंकरों के भी रंगों का वर्णन हुआ है। ध्यान में आकृति और
रंग का महत्त्व है ही। 5. रंग-चिकित्सा का महत्त्व सुविदित है। णमोकार मन्त्र के पदों के
जाप से विभिन्न रंगों की कमी पूरी की जा सकती है। रंगों को
शुद्ध भी किया जा सकता है। 6. इन्द्रधनुष के सात रंगों का महत्त्व, रंग चिकित्सा का महत्त्व, रत्न चिकित्सा का महत्त्व और रश्मि चिकित्सा का महत्त्व भी समझना
आवश्यक है। 7. स्यूल माध्यम से धीरे-धीरे ही सूक्ष्म भावात्मक लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। रंग हमारे शरीर के एवं मन के संचारक एवं नियन्त्रक तत्त्व हैं अत: इनके माध्यम से हमारी आध्यात्मिक यात्रा अर्थात् मन्त्र से साक्षात्कार की यात्रा सहज ही सफल हो सकती है।