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णमोकार मन्त्र और रंग विज्ञान 2958
प्रकृति, तत्व, रंग - प्रकृति पंच तत्त्वों के माध्यम से प्रकट होती है । प्रकृति का अर्थ है सृष्टि की मूल एनर्जी (ऊर्जा) । प्र का अर्थ है प्रकृष्ट गुण अर्थात् पैदा होना । कृ का अर्थ है क्रियाशील होना अर्थात् स्थिर होना । 'ति' का अर्थ है नष्ट होना । तो प्रकृति शब्द का पूर्ण अर्थ हुआ - बनना, स्थिर होना और नष्ट होना । इसी प्रकार प्र- - सतोगुण, कृ - रजोगुण और ति - तमोगुण के प्रतिनिधि अक्षर हैं । इन तीन में ही समस्त संसार बसा हुआ है । णमोकार मन्त्र इस सबको जानने की कुंजी है ।
तत्व और उनका प्रवाह - हम अपनी नासिका को हवा की दिशा और गति के द्वारा अपने भीतर के तत्त्वों की स्थिति को जान सकते हैं। पृथ्वी का प्रवाह 20 मिनट तक, जल तत्त्व का प्रवाह 16 मिनट तक, वायु का 12 मिनट तक, अग्नि तत्त्व का 8 मिनट तक और आकाश का प्रवाह नासिका वायु में 4 मिनट तक चलता है । नासिका में बायीं ओर चन्द्र स्वर है और दायीं ओर सूर्य स्वर है । शरीर में . आनुपातिक शीतलता और उष्णता जरूरी है । अनुपात बिगड़ने पर आते हैं । यदि नासिका की हवा नीचे की ओर चल रही है तो वह अम तत्त्व प्रधान है । तिरछी ओर है तो पृथ्वीतत्त्व है । ऊपर की ओर या रही है तो अग्नि तत्त्व है । चारों तरफ बह रही है तो वायु तत्त्व है। यदि कुछ स्पर्श करती हुई ऊपर जाती है और वहीं समाप्त हो जाती है तो वह आकाश तत्त्व है । पृथ्वी 12, जल 16, वायु 8, अग्नि 6, आकाश 4 अंगुल तक अपनी दिशा में जा सकता है ।
प्रवाह क्षण
(मिनट)
दिशा
गति
सार चित्र
नासिका विवरों की हवा और तत्त्व
अग्नि 8
पृथ्वी तत्व
20
जल
16
वायु
12
तिर्यक्ष गति अधोगति चतुर्दिक ऊर्ध्वं गति कुछ ऊर्ध्वमुखी
अल्प जीवी
12 अंगुल 16 अंगुल 8 अंगुल पर्यन्त पर्यन्त पर्यन्त
आकाश
4
6 अंगुल पर्यन्त
4 अंगुल पर्यन्त