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णमोकार मन्त्र और रंग विज्ञान 3 938 या पदार्थ के शक्ति-व्यूह को उसके गुणों को, उसकी वैयक्तिकता को पहिचाना गया । क्रम रहा-वस्तु से ध्वनि, ध्वनि से तत्त्व, तत्त्व से शक्ति-व्यूह, शक्ति व्यह से भावना और विचार इसी प्रकार वर्ण किस तत्त्व को प्रभावित करता है, वह किस शक्ति-व्यूह (Electric Current) को पकड़ रहा है, इसको खोजा गया परिणामतः प्रत्येक वर्ण को उसके विशिष्ट तत्त्व से जोड़ दिया गया। __ जहां तक इन वर्गों की आकृति का सम्बन्ध है यह पहले ही कहा जा चुका है कि हर ध्वनि आकृति को पैदा करती है। ध्वनि और आकृति सम्बन्ध वैसा ही है जैसा कि शरीर और शरीर की छाया का। जब हम शब्दों को बोलते हैं तो उनकी आकृति आकाश में उसी तरह अंकित होती चली जाती हैं जैसी कि फोटो लेते समय फोटो की विषयवस्तु का चित्र कैमरे के प्लेट पर अंकित हो जाता है। ध्वनियों की इन अंकित आकृतियों को प्राचीन ऋषियों ने आकाश में देखा है । अ, आ, इ, ई आदि स्वर कैसे बने एवं अन्य व्यंजन कैसे बने ? इनके पीछे जो कहानी है वह उच्चारण आकृति और प्रतिलिपि की कहानी है। संस्कृत और प्राकृत भाषा में यह प्रयोग अत्यन्त सरलता से किया जा सकता है। स्पष्ट है कि इस लिखी गयी आकृति में और आकाश पर अंकित आकृति में अद्भुत साम्य है।
आज विज्ञान के प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि ध्वनि को प्रकाश में बदला जा सकता है। विभिन्न प्रकम्पन आवृत्ति (Frequencies) में प्रवृत्त होने वाला प्रकाश ही रंग है। प्रकाश, रंग एवं ध्वनि पृथक्-प्रथक तत्त्व नहीं है अपितु एक ही तत्त्व के अलग-अलग पर्याय या प्रकार हैं। इनमें से किसी एक के माध्यम से अन्य दो को प्राप्त किया जा सकता है।
रंग का जगत् हमारे मानसिक और बाह्य जगत् को सफलतापूर्वक प्रभावित कर सकता है। रूस की एक अन्धी महिला हाथों से रंगों को छूकर उनसे उत्पन्न होने वाले भावों का अनुभव कर लेती थी। वह थोड़ी ही देर में उन रंगों का नाम भी बता देती थी। लाल रंग की वस्तु को छूने पर उसे गरमाहट का अनुभव होता था। हरे रंग का स्पर्श करते ही उसे प्रसन्नता का अनुभव होता था। नीले रंग की वस्तु को छूने पर उसे ऊंचाई और विस्तार का अनुभव होता था । मन्त्र और