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1286 & महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
5. पुष्पराग या
पुखराज नीला बृहस्पति विशुद्ध 6. हीरा जामुनी शुक्र स्वाधिष्ठान 7. नीलम आसमानी शनि अनाहत
ये सात प्रमुख एवं प्रतिनिधि रत्न शाश्वत रूप से सृष्टि को सात रंगों वाली किरणें प्रदान करते हैं। इन्हीं सात रंगों को हम इन्द्र-धनुष में देखते हैं। इन्हीं सात किरणों या रंगों की सष्टि की रचना, रक्षा और विनाश की स्थिति है। नक्षत्रों के समान उक्त सात पवित्र रत्न उक्त सात इन्द्रधनुषी रंगों के ही सघन या संक्षिप्त रूप हैं। इन रत्नों के विषय में कुछ मूलभूत बातें ये हैं। 1. सबसे पहली बात यह है कि ये रत्न सदा अपना एक शुद्ध रंग ही रखते हैं और वहभी बहुत अधिक मात्रा में रखते हैं। इनमें मिश्रणों
की संभावना नहीं है। 2. ये सभी रत्न अत्यधिक चमकीले होते हैं और अपनी रंगीन किरण
को सदा प्रकट करते हैं। 3. ये रत्न अल्कोहल, स्पिरिट और पानी में डाले जाने पर अपनी . किरणों का प्रकाश विकीर्ण करते हैं। इनमें न्यूनता या थकान
नहीं आती। 4. इनके रंगों की विश्वसनीयता के लिए तिकोना शीशा (Prism) भी
उपयोग में लाया जाता है।
णमोकार महामन्त्र में अन्तनिहित रंगों का अपना विशेष महत्त्व है। अर्थ के स्तर पर, ध्वनि के स्तर पर और साधना (योग) के स्तर पर इस महामन्त्र को समझने का या इसमें उतरने का प्रयत्न किया जाता रहा है और इस दिशा में भारी सफलता भी प्राप्त हुई है। रंग-विज्ञान या रंग-चिकित्सा का भी एक विशिष्ट एवं व्यापक धरातल है। इसके आधार पर अन्य आधारों को भी एक निश्चित कोणों में रखकर समझा जा सकता है। पांचों परमेष्ठियों का एक सुनिश्चित प्रतीक रंग है। अरिहंत परमेष्ठी का श्वेतवर्ण, सिद्ध परमेष्ठी का लाल वर्ण, आचार्य परमेष्ठी का पीला वर्ण, उपाध्याय परमेष्ठी का नील वर्ण तथा साधु