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णमोकार मन्त्र और रंग विज्ञान 8 83 जीवन के अनुभव की बात हो गयी है। किन्तु आकृति और दृश्यों का अवतरण एवं सम्प्रेषण भी कैमरा, एक्सरे और टेलीविजन जैसे यन्त्रों से कितना सुगम हो गया है, यह तथ्य भी सभी को ज्ञात है। कम्प्यूटर से तो अब आदमी की मानसिकता का भी सही पता लगने लगा है। __ यदि सूर्य के प्रकाश को त्रिपार्श्व (तिकोना शीशा, Prism) से सम्प्रेषित किया जाए तो उसका (प्रकाश) विश्लेषण हो जाता है। ऐसी प्रक्रिया में सूर्य बिल्कुल नये रूप में प्रकट होता है। इसमें हमें सात रंग दिखाई देते हैं। किसी वस्तु पर यह प्रकाश विकीर्ण करने पर ये सातों रंग स्पष्ट हो जाते हैं। इस विश्लेषित प्रकाश को हम स्पेक्ट्रम कहते हैं। इस विश्लेषण का प्रकारान्तर यह हुआ कि यदि उक्त सात रंगों को (बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला नारंगी, लाल) मिश्रित कर दें तो सफेद रंग बनेगा। रंगों अथवा रंगीन किरणों के गुण :
लाल, नीला और पीला ये तीन प्रधान रंग हैं । अन्य रंग इनके भिन्न-भिन्न आनुपातिक मिश्रणों से बनते हैं । इन रंगों का सुख, समृद्धि और चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत महत्त्व है। लाल प्रकाश या रंग धमनी के रक्त (लाल) को उत्तेजित करता है। कुछ नारंगी और पीला प्रकाश नाड़ियों को उत्तेजित करता है। इन नाड़ियों में यही रंग होता है। नीला रंग धमनी के रक्त को शान्त करता है, किन्तु यही शिराओं के रक्त को तेज भी करता है। कभी-कभी विपरीत रंगों के प्रयोग से असन्तुलन दूर होता है। सिर में रक्त और नाड़ियों की प्रधानता है, सन्तुलन के लिए नीले और बैंगनी रंग से लाभ होता है। हाथ-पैरों के दर्द आदि के लिए लाल रंग उत्तम हैं । मासिक धर्म की अधिकता में नीला, पीलिया में पीला रंग उपयोगी है। लाल रंग : लाल रंग में गर्मी होती है। नाड़ियों को उत्तेजित करना
इसकी विशिष्ट प्रवृत्ति है। चोट या मोच में इसका प्रयोग होता है। यौन दौर्बल्य (Sexual weakness) में इसका
अद्भुत प्रभाव होता है। नारंगी : यह रंग भी उष्णता देता है । दर्द को दूर करने में यह सफल