SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महामन्त्र णमोकार और ध्वनि विज्ञान 2771 गतिमयता सिद्ध करना। फिर भी आधुनिक सभ्यता की मांग है कि किसी भी बात को तर्क सिद्ध करके ही स्वीकार किया जाए। अतः इस चर्चा में महामन्त्र की अनेक शक्तियों के साथ उसकी ध्वन्यात्मक महत्ता की एक संक्षिप्त किन्तु पूर्ण झलक दी गयी है। _1. ध्वनियों की सम्पूर्ण ऊर्जा इस महामन्त्र में निहित है । वर्णों का संयोजन और गठन का क्रम ध्वनि तरंगों के स्फोटक सन्दर्भ में है। 2. ध्वनि विज्ञान एक सम्पूर्णता और संश्लिष्टंता का विज्ञान है। यह सम्पूर्णता और संश्लिष्टता इस महामन्त्र में अन्तःस्यूत है। ___3. इस महामन्त्र का ध्वन्यात्मक पूर्ण लाभ लेने के लिए प्राकृत भाषा का अपेक्षित अभ्यास कर लेना आवश्यक है। शुद्ध उच्चारण से ही अपेक्षित आभा मण्डल निर्मित होता है और शुक्ल-ऊर्जा संचारित होती है। 4. णमोकार मन्त्र सदा एक महा समुद्र है । मानव को इसमें गहरेगहरे उतरने पर नित्य नये अर्थ एवं ध्वनि गुण की नवीनता प्राप्त होगी। 5. ध्वनि, रंग, और प्रकाश का घनिष्ठ नाता है। इन तीनों को एक साथ समझना होगा। पंच परमेष्ठियों के अपने-अपने प्रतीकात्मक रंग हैं । रंग चिकित्सा (कलर थेरेपी) का महत्त्व आज सुविदित है। रंग के प्रयोग, वस्त्रों पर, मकान पर और प्रकाश पर करने से रोग-निवारण की प्रक्रिया है ही। 6. ध्वनि और शब्द ब्रह्मात्मक ध्वनि में अन्तर है।वर्णमातृकाओं के अन्दर गभित तत्त्वों के कारण, वर्ण संयोजन के कारण और भक्त की निष्ठा और एकाग्रता के कारण अद्भुत लौकिक और पारलौकिक प्रभाव उत्पन्न होता है। 7. तर्क की अपेक्षा यह मन्त्र अनुभूति के स्तर पर स्वानुभव का विषय अधिक है। मन्त्र तर्कातीत होते हैं । 8. भाषा वैज्ञानिक स्तर पर, भौतिक स्तर पर, श्रावणिक स्तर पर ध्वनि का अध्ययन करने के साथ-साथ योगिक स्तर एवं आध्यात्मिक स्तर पर भी ध्वनि को महामन्त्र के सन्दर्भ में संक्षेप में आस्फालित
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy