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________________ 378 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण किया गया है। शब्दशक्ति और न्याय शास्त्र का भी सन्दर्भ देखा गया है। यह आलोडन यहां सांकेतिक ही रहा है। ध्वनि के स्तर पर महामन्त्र की ऊर्जा को ठीक ढंग से समझने के लिए एक पूरी पुस्तक भी कम होगी। सामान्य जीवन में ही शब्द की ध्वनि जब परिचित और व्यवहत अर्थ से हटकर केवल नादात्मक एवं लयात्मक रूप धारण कर संगीत में ढलती है अथवा कीर्तन में ढलती है तब एक अद्भुत लोकोत्तर तन्मयता समस्त जड़ चेतन में व्याप्त हो जाती है। यह क्या है ? यह केवल ध्वनि शब्द ब्रह्म का सहज रूप है। यह कार्य ध्वनि-लयात्मक संगीत से ही सम्भव है । बहु ध्वनि की एकतानता से समस्त जड़ चेतन में एकतालता छा जाती है। अपने भौतिक शाब्दिक स्तर से उठता हुआ। संगीत-लयात्मक नाद जब आहत से अनाहत नाद की स्थिति में पहुंचता है तब सहज ही आत्मा की निविकार सहज अवस्था से साक्षात्कार होता है। नमस्कार महामन्त्र का अथवा सामान्य मन्त्र का मुख्य प्रयोजन तो मानव को उसके मूल शुद्ध आत्म-स्वरूप को गरिमा की पहचान कराना है, परन्तु कुछ अन्य मन्त्र चमत्कार और सांसारिकता में ही उलझ कर रह जाते हैं । णमोकार मन्त्र महामन्त्र इसीलिए हैं। क्योंकि वह सबका सामान्यत्व अपने साथ रहकर भी इससे बहुत ऊपर आत्मा के ज्योतिष्क लोक से अपना असली नाता रखता है। गुरु मन्त्र कौन देता है जो दिव्य कर्ण से युक्त होता है; गुरु हमें देखते ही हमारे आभामण्डल की गतिविधि को पहचान लेते हैं। वे समझ लेते हैं कि हमें किस शब्द मन्त्र की आवश्यकता है। वही शब्द गुरु देते हैं। वह शब्द हमारे शक्ति व्यूह को जगाने वाला होता है। उस शब्द के तन्मयता पूर्वक लगातार किये गये जप से हमारे अन्दर एक ध्वनिमूलक रासायनिक परिवर्तन होता है। मन्त्र ही सूक्ष्म एवं अतीन्द्रिय ध्वनियां पैदा कर सकता है। सामान्य शब्द या ध्वनि से वह काम नहीं हो सकता। वैज्ञानिकों ने प्रयोग करके पता लगाया कि श्रव्य ध्वनि वह शक्ति नहीं रखती है जो शक्ति मानसिक ध्वनि में होती है । यदि श्रव्यं ध्वनि के उच्चारण से एक प्याला पानी भी गरम करना हो तो लगातार डेढ़ सौ वर्ष लगेंगे। तब जरूरत वाला व्यक्ति भी न रहेगा। इतनी ऊर्जा उच्चरित ध्वनि से डेढ़ सौ वर्षों में पैदा होती है। लेकिन वही शब्द या
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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