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________________ महामन्त्र णमोकार और ध्वनि विज्ञान के 69 और उनसे उत्पन्न होने वाले भावों का अनुभव कर रंगों को पहचानती थी । लाल रंग की वस्तु को छूने पर उसे गरमाहट का अनुभव होता था । वह बता देती थी कि वह लाल रंग को छू रही है। हरे रंग का स्पर्श करने पर उसे प्रसन्नता का अनुभव होता था और वह हरे रंग को पहचान लेती थी । नीली वस्तु को छूने पर उसे ऊंचाई का अनुभव होता था और वह नीले रंग को पहचान लेती थी । मन्त्र और इससे उत्पन्न होने वाले रंग हमारे आन्तरिक जगत् के ह्रास और विकास में महत्त्वपूर्ण योग देते हैं । सामान्य वाणी और मन्त्र वाणी समस्त वर्ण-माला का और उससे बने शब्दों और वाक्यों का सामान्यतया सभी उपयोग करते हैं । अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं में, प्रेम में, क्रोध में, सुख में, दुःख में वे ही ध्वनियां उच्चरित होती हैं । परन्तु ऐसे सभी शब्द मन्त्र नहीं कहे जा सकते। इनसे लोकोत्तर ऊर्जा और प्रभाव को भी पैदा नहीं किया जा सकता । वे शब्द या शब्द समूह ही मन्त्र हैं जिनकी शक्ति को पुनः पुनः पवित्र साधना और मनन के द्वारा जगाया गया है । इस शक्ति जागरण की प्रक्रिया में केवल शब्द की ही शक्ति नहीं जगती है परन्तु साधक की पवित्र और तन्मय आत्मा की शक्ति भी जगती है । अतः मन्त्रित शब्द जोकि मन्त्र बन गये हैं उनमें पुरातनप्रयोक्ताओं ने अपार शक्ति भी अपनी साधना संचरित की है । यह हम आज जगाना चाहें तो हमें अपनी पात्रता पर भी एक दृष्टि डालनी होगी । हृदय और मन की पवित्रता, साधना एकाग्रता और निरहंकार तथा निःस्वार्थ आचरण मन्त्र पाठ की पूर्ववर्ती शर्तें हैं । ह हलो बीजानि चौक्तानि स्वराः शक्तय ईरिताः ॥ 366 ॥ ककार से हकार पर्यन्त के व्यंजन बीज रूप हैं और अकारादि स्वर शक्ति रूप हैं । मन्त्र बीजों की निष्पत्ति बीज और शक्ति के संयोग से होती है । अतः सामान्य वाणी की तुलना में मन्त्र-वाणी अत्यधिक शक्तिशालिनी एवं प्रभावोत्पादक होती है । फिर मन्त्र प्रयत्न करके नहीं रचे जाते, ये तो अनायास ही सहज वाणी के रूप में किसी परम
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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