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: 68; महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
Preservative power, Destructive power) कहा जाता है। इन तीन शक्तियों के कारण ही जगत् का क्रम चल रहा है। योग-शास्त्र के अनुसार मनुष्य के शरीर में इड़ा नाड़ी सोमरस को या चन्द्र की ऊर्जा को वहन कर रही है। पिंगला नाडी सूर्य का तेज धारण कर रही है और सुषुम्ना अग्नि की ऊष्मा का संचारण कर रही है। मन्त्रों में तीनों प्रकार के वर्गों का विन्यास होता है अतः मन्त्रों में भी वे शक्तियां रहती हैं। योग शास्त्र के अनुसार व्यंजन वर्ण शिव रूप हैं, उनमें स्वयं गति नहीं है । स्वरों से जुड़कर ही वे गति प्राप्त करते हैं। अत: व्यंजनों को योनि कहा गया है और स्वरों को विस्तारक।
ध्वनि जब आहत नाद के रूप में मुंह से बाहर निकलती है तो शब्द एवं वर्ण कहलाती हैं। वर्ण का एक अर्थ प्रकाश भी होता है। ध्वनि को प्रकाश में बदला जा सकता है। विभिन्न प्रकम्पनों, आवृत्तियों (Frequencies) में प्रकम्पित होने वाला प्रकाश ही रंग है। प्रकाश, रंग, और ध्वनि मूलतः एक ही हैं। एक ही ऊर्जा के दो आयाम हैं। दोनों अविभाज्य हैं।
ध्वनि
आहत नाद
अनहत नाद (शब्द ब्रह्म)
शब्द-वर्ण-आकृति
प्रकाश
रंग
स्पष्ट है कि प्रत्येक आहत ध्वनि आकृति में बदलती है और आकृति का अर्थ है अभिव्यक्ति । अभिव्यक्ति का अर्थ हैं रंग और प्रकाश का होना । अभिव्यक्ति आकार और रंग की ही होगी और रंग व्यक्त होगा प्रकाश के कारण । ध्वनि, वर्ण और रंग और प्रकाश का घनिष्ठ सम्बन्ध मन्त्र के अध्ययन मनन में गहरी भूमिका निभाता है।
रंग का जगत् हमारे मानसिक और आन्तरिक जगत् को बहुत प्रभावित करता है । रूस की एक अन्धी महिला हाथों से रंगों को छकर