SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महामन्त्र णमोकार और ध्वनि विज्ञान 1652 लगता है । दृढ़ इच्छा शक्ति टूट जाती है। इसी तत्त्व की सही साधना से मानव में अनन्त ज्ञान, वैराग्य और आनन्द का संचार होता है। हमारे शरीर में जो हमारा मूल स्थान है जिसे हम ब्रह्म योनि या कडलिनी कहते हैं, उसी से ऊर्जा का प्रथम स्पन्दन होता है। यही म्पन्दन ध्वनि में परिणत होता है। ___ णमोकार मन्त्र के प्रत्येक पद का प्रारम्भ णमो से हुआ है। णमो पद बोलकर हम अपने अहंकार का विसर्जन करते हैं। 'ण' बोलते ही निर्ममत्व या नहीं का भाव जाग उठता है और 'मो' के उच्चरित होते ही पूरा अहंकार टूट जाता है । निरहंकारी व्यक्ति ही णमोकार मंत्र के पाठ का अधिकारी है। 'ण' सीधा आकाश की ओर लगता है। वह नाभि से उठता है और आकाश की ओर चलता है। 'मो' स्वाधिष्ठान . में चलता है। इसके उच्चरित होते ही हमारे ओष्ठ जुड़ जाते हैं। ध्वनि निकलने की बहुत थोड़ी जगह ओठों के ठीक मध्य में बचता है। 'ओ' अ?ष्ठ ध्वनि है। स्पष्ट है कि णमो' पद का उच्चारण करते ही हमारी सांसारिक-बोझिलता समाप्त होती है और हमारे मन में एक आत्मिक (ऊर्जा) (Energy) का प्रस्फुटन होने लगता है। 'ण' पिंगला से सुषुम्ना की ओर यात्रा है ओर मो के उच्चारण के साथ ही हम सुपुम्ना में लय हो जाते हैं। - ध्वनि का दूसरा नाम है नाद । नाद दो प्रकार के होते हैं। मनुष्य के मस्तिष्क के अन्तिम शीर्ष से ऊर्जा प्रवेश करती है । वह सुषुम्ना में होती हुई ब्राह्मणी के द्वारा मूलाधार को प्रभावित करती है-आगे बढ़ती है। मूलाधार से शब्द पैदा होते हैं। यही ध्वनि जब पिंगला से जुड़ती है तो दूसरी ध्वनियां पैदा होती हैं। पिंगला से जुड़ने पर या तो ह्रस्व स्वर (अ, इ, उ, ऋ, ल) या अनहत नाद' के अक्षर। स्वाधिष्ठान के नीचे जो अणकोष (दो) हैं उनके नीचे की जड़ से दो नाड़ियां जाती हैं। इनमें से दाहिनी और से निकलने वाली को पिंगला और वाई. ओर से निकलने वाली को इड़ा कहते हैं। इन दोनों का सम्बन्ध मूलाधार से जुड़ता है। यह होते ही ऊर्जा (Enkrgy) आने लगती है, एक प्रकम्पन होता है, तरंग बनती है और सुषुम्ना में उतरती है और ध्वनियां उत्पन्न होने लगती हैं। कुछ ध्वनियां इड़ा से सम्बन्धित हैं और कुछ पिंगला से । ध्वनियों का सम्बन्ध तत्त्वों से हो जाता है। तत्त्वों के बाद उन का सम्बन्ध अलग-अलग चक्रों से है। कुछ ध्वनियां
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy