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________________ 2 64 8 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण असमर्थ हैं । शब्द जब स्थूल या अपर बनता है तो श्रव्य एवं ग्राह्य हो जाता है । ध्वनि की विषमता इस संसार की अशान्ति का कारण है । जहां ध्वनि की समरसता और एकतानता है वहाँ समता और शान्ति है । संगीत उसी का एक रूप है । ध्वनि तरंग ही विकसित होकर अक्षर का रूप धारण करती है। ध्वनि ही तत्त्वों से जुड़कर एक आकृति में ढलती है । यह आकृति ही अक्षरात्मक, लिपिपरक रूप धारण कर लेती है । आकृति और ध्वनि का सम्बन्ध छाया और धूप जैसा है। आकृति वास्तव में ध्वनि की छाया है। इन आकृतियों को जो आकाश में व्याप्त हैं, महात्माओं और ऋषियों ने देखा है । आशय यह है कि ध्वनि से आकृति और आकृति से अक्षर और अक्षर से शब्द तथा शब्द से वाक्य का क्रम रहा है। ध्वनि जब आकृति में अवतरित होती है, तब कैसी होती है ? आकृति और ध्वनि में अद्भुत साम्य है । जैसा हम बोलते हैं वैसा ही लिखते हैं, और जैसा लिखते हैं, वैसा ही बोलते भी हैं । प्रत्येक पदार्थ आकृति से बंधा है। आकृति का अर्थ है एक विशेष प्रकार का, रस, गंध, वर्ण एवं स्पर्श । ये सभी विशिष्ट आकृतियां किसी देवता से सम्बद्ध हैं । मन्त्रों के माध्यम से जब हम देव - चिन्तन करते हैं तो हमारी शक्ति बढ़ती है । मनोबल बढ़ता है और देवताओं से हमारा साक्षात्कार होता है । 1 ध्वनि उच्चारण से आकृति का बोध होता है और आकृति से अक्षर का बोध होता है । हर अक्षर एक तत्त्व से बंधा है । चतुष्कोण से पृथ्वी तत्त्व का, षट्कोण से वायु तत्त्व का, चन्द्र लेखा से जल तत्त्व का त्रिकोण से अग्नि तत्त्व का और वर्तुलाकार कोण से आकाश तत्त्व क बोध होता है । हमारे सभी सांसारिक कार्य इन तत्त्वों से बंधे हुए हैं। इन तत्त्वों की स्थिति या अनुपात बिगड़ते ही हम अनेक प्रकार की कठिनाइयों में पड़ जाते हैं; पृथ्वी तत्त्व की कमी होते ही शरीर में रोग उत्पन्न होने लगते हैं । जल तत्त्व के बिगड़ते ही खून बिगड़ने लगता है । मन पर भी इसका प्रभाव पड़ता है । मस्तिष्क के विकृत होने से विचार भी बिगड़ते हैं । अग्नि तत्त्व बिगड़ने या कम होने से शरीर में उत्ताप होने लगता है। वायु तत्त्व के अस्त-व्यस्त होने से अनेक प्रकार के दर्द पैदा होने लगते हैं । आकाश तत्त्व बिगड़ता है तो मन विक्षुब्ध होने
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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