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________________ महामन्त्र णमोकार और ध्वनि विज्ञान 638 का एक ही मतलब है। वाक् अग्नि से आता है, प्राण सूर्य से आता है और मन चन्द्रमा से। हमें समझना होगा कि ये तीनों हमारे भीतर कैसे पैदा होते हैं। मन से कैसे प्रकट होते हैं और फिर कैसे बाहर के विश्व में व्याप्त होते हैं। ___ मन्त्रों का प्रयोजन यही है कि आप बैखरी के द्वारा शब्द के मूल को पकड़ने के लिए गहरे उतरते चले जाएं। प्रकाश के मूल स्रोत तक बढ़ते जाएं-वहां तक कि जहां से मूल करेण्ट का संचालन हुआ हैजन्म हुआ है। आप अन्त में परा वाणी तक पहुंच जाएं। जब आपका स्पन्दन (तेज, लय) पाराणसी तक पहुंच जाएगा, तब सारे जगत् को परिवर्तित करने में आप परम समर्थ हो जाएंगे, अर्थात् सारी सांसारिकता आपकी दासी हो जाएगी और आपमें एक लोकोत्तर आभामण्डल उदित होगा। मन्त्रोच्चारण में स्पन्दनों की, लय और ताल की अनुरूपता का बहुत महत्त्व है। लय और नाल ठीक होने पर ज्ञान और भाव दोनों में वृद्धि होगी। बैखरी जप का प्रभाव निरन्तर शक्ति और सामर्थ्य बढ़ाता है, परन्तु इसका पूरा निर्वाह कठिन है। स्थूल देह के उच्चारणों की अपनी सीमा होती है। मानसिक जाप की महत्ता अद्भुत है। कुण्डलिनी के जागरण में यही जाप कार्यकर होता है; पर चित्त की स्थिरता तो ऋषि, मुनि भी नहीं रख पाते। अतः बैखरी (उच्चारण प्रधान) जाप से बढ़ते-बढ़ते मानस जाप तक हमें पहुंचने का संकल्प रखना चाहिए। इस कार्य में जल्दबाजी अच्छी नहीं होती। _ध्वनि पर भाषावैज्ञानिक, भौतिक एवं श्रावणिक स्तरों पर विचार किया जा चुका है। ध्वनि के स्फोटवाद और शब्दब्रह्मवादी सिद्धान्त का भी अनुशीलन हो चुका है। ध्वनि के शक्तिरूप और आध्यात्मिकरूप पर भी संक्षेप में विचार करना वांछनीय है। इससे णमोकार मन्त्र की ध्वन्यात्मक शक्ति को समझने में सुविधा होगी। ___ ध्वनि इस जगत् का मूल है, ध्वनि के बिना इस जगत् को पहचाना नहीं जा सकता। जगत् के पंच तत्त्व, समस्त पदार्थ आदि ध्वनि में गभित हैं। प्रत्येक परमाणु में जगत् व्यापी ध्वन्यात्मक विद्युत्कण हैं, बस उनका आकार सिमट गया है। हर कण में, लहर, लम्बाई, चंचलता और विक्षोभ है। हम इस सब को अपने कानों से सुनने में
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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