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1622 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
उच्चरित होते ही ववता स्वयं के या श्रोता के चित्त में यह स्फोट अर्थ के रूप में उद्भासित होता है। व्याकरण (पाणिनि व्याकरण) के प्रसिद्ध भाष्यकार पतञ्जलि ने इस शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया है। व्याकरण में उनकी स्फोटवाद की व्याख्या प्रसिद्ध है ही। भर्तृहरि ने अपने ग्रन्थ वाक्यपदीय में दार्शनिक सन्दर्भ में स्फोट का उल्लेख किया है। इस स्फोटवादी सिद्धान्त के अनुसार शब्दों के द्वारा जो अर्थ प्रकट होता है वह न तो वाणी में होता है और न ही शब्दों में, वह तो उन वों और शब्दों में सन्निहित शक्ति के कारण ही अभिव्यक्त होता है। यह शक्ति ही स्फोटक कहलाती है। काव्य-शास्त्र में वक्रोक्ति, ध्वनि और व्यंजना आदि के रूप में इसी शब्द-शक्ति को स्वीकार किया गया है। ब्रह्मवादियों के अनुसार यह स्फोट-शक्ति शुद्ध माया के प्रथम विवत्मिक नाद में निहित है। नाद ही जगत का मूल है और यह जगत् अर्थ रूप में शब्द से निष्पन्न है। . ___ जैन धर्म के अनुसार तीर्थंकर केवल-ज्ञान प्राप्त कर जिस निरक्षरी और ओंकारात्मक वाणी द्वारा उपदेश देते हैं, वह वाणी ही समस्त अर्थों और विद्याओं से बहुत परे है। इस वाणी को जीव मात्र अपनीअपनी भाषा में समझ लेते हैं। नाद ब्रह्म या केवली की दिव्य-ध्वनि के मूलाधार पर ही समस्त सृष्टि का विस्तार आधृत है। आज आवश्यकता यह है कि हम उस मल ध्वनि से पर्याप्त भटक गये हैं और उसकी पहचान खो बैठे हैं। यह ध्वनि महामन्त्र णमोकार में है।
णमोकार मन्त्र में वर्ण और ध्वनि ___ णमोकार मन्त्र समस्त वर्णों का प्रतिनिधि मन्त्र है। स्वर एवं व्यंजनमय सारी मातृका शक्तियां उसमें हैं। प्रत्येक वर्ण मन्त्र में एक निश्चित स्थान पर एक निश्चित शक्ति के रूप में विद्यमान है। उस वर्ण का स्वरूप, उसका रंग, उसका तत्त्व, उसकी आकृति और उससे उत्पन्न होने वाले स्पन्दन (ऊर्जात्मक या तेजोलेश्यात्मक) को पूर्णतया समझना होगा। स्पन्दन उच्चारण और मनन ऊर्जा से सम्बद्ध है। शक्ति प्राप्ति के लिए स्पंदन को समझना है। स्पन्दन के लिए ध्वनि; संख्या और अर्थ का त्रिक जड़ना आवश्यक है। इन तीनों के विकास में वाक्, प्राण और मन का भी कम है। वाक, प्राण और मन इन तीनों