________________
3663 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
मूलाधार को प्रभावित करती हैं, कुछ स्वाधिष्ठान को, कुछ मणिपुर को, कुछ अनहत को, कुछ विशुद्ध को, कुछ आज्ञा चक्र को ओर कुछ सहस्रार को। ___ अध्यात्म की पद्धति अन्तनिरीक्षण है तो विज्ञान की पद्धति परीक्षण है। दोनों इस ब्रह्माण्ड के मूल तत्त्व की खोज में लगी हुई पद्धतियां हैं ।
योग शास्त्र की दृष्टि से आन्तरिक रचना योग की दृष्टि से शरीर के भीतरी भागों में सात चक्र हैं। इनकी सहायता से ध्वनि और आकृति को सरलता से समझा जा सकता है। ये सात चक्र इस प्रकार हैं : 1. मूलाधार चक्र, 2. स्वाधिष्ठान चक्र,
3. मणिपुर चक्र, 4. अनाहत चक्र, 5. विशुद्ध चक्र, 6. आज्ञा चक्र, '. 7. सहस्रार चक्र।
1. मूलाधार चक्र-हमारे पृष्ठवंश का सबसे नीचे का भाग पुच्छास्थि है। उससे थोड़ा-सा ऊपर बांस को जड़ के समान एक नाड़ियों का पुंज हैं। इसी को मूलाधार कहते हैं। यह कुंडलिनी शक्ति का आधारभूत स्थान है । अतः इसे मूलाधार कहते हैं। इसमें पृथ्वी तत्व की प्रधानता है।
2. स्वाधिष्ठान-मूलाधार से लगभग चार अंगुल ऊपर मूत्राशय गर्भाशय के मध्य शुक्रकोश नाम की ग्रंथि है, वह इस चक्र का स्थान माना गया है। इसमें जल तत्त्व की प्रधानता मानी गयी है। कफ एवं शुक्र जैसे जलीय विकारों से इसका विशेष सम्बन्ध है।
3. मणिपुर चक्र-नाभि प्रदेश इसका स्थान माना गया है। इसमें अग्नि तत्त्व की प्रधानता है। इसे नाभि चक्र भी कहा जाता है। ___4. अनाहत चक्र-छाती के दोनों फफ्फुसों के मध्यवर्ती रक्ताशय नामक मांसपिण्ड के भीतर इसका स्थान माना जाता है। इसमें वायु तत्त्व की प्रधानता मानी गयी है। इसे हृदय चक्र भी कहा जाता है।
5. विशुद्धि चक्र-हृदय के ऊपर कण्ठ स्थान में थाइराइड ग्रन्थि के पास स्वर-यन्त्र में इसका स्थान माना जाता है। इसमें वायु तत्त्व की प्रधानता है।
6. आज्ञा चक्र-दोनों भौंओं के बीच में अन्दर की ओर भरे रंग के कणों के समान मांस की दो ग्रन्थियां हैं। वहां इसका स्थान माना गया