________________
महामन्व णमोकार और ध्यनि विज्ञान 3578
प्रमुख उच्चारण अवयव और उनकी क्रियाएं संक्षेप में इस प्रकार
फेफड़े-फेफड़ों में श्वास-प्रश्वास की क्रिया निरन्तर होती रहती है। यही श्वास बाहर आने पर ध्वनि का रूप धारण करती है। फेफडों के ऊपर स्थित श्वास नली से होकर ही श्वास बाहर आती है-इस श्वास से ही ध्वनि उत्पन्न होती है।
श्वासनलिका भोजन नलिका और अभिकाकल-हम प्रतिक्षण नाक के द्वारा भीतर की तरफ सांस लेते हैं और उसे फेफड़ों में पहुंचाते हैं। वही श्वास (वायु) फेफड़ों को स्वच्छ कर फिर बाहर निकल जाती है। यह श्वांस नलिका फेफड़े का ही एक अंग है। ___ श्वास नलिका के पीछे भोजन नलिका है जो नीचे आमाशय तक जाती है। इन दोनों नलिकाओं को पृथक करने के लिए इन दोनों के बीच में एक दीवाल है । भोजन नलिका के साथ श्वास नलिका की ओर झकी हुई एक छोटी-सी जीभ है। जिसे अभिकाकल कहा जाता है। श्वास नलिका को भोजन के सम वन्द करने का इसी का काम है। यह दीवाल भोजन निगलते समय श्वासनली के मुख को बन्द कर देती है और तब भोजन नली खुल जाती है जिससे होकर भोजन सीधा आमाशय में पहुंच जाता है। श्वास नली वन्द न हो तो भोजन उसमें पहुंचेगा, उस स्थिति में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है । स्पष्ट है कि भोजन के समय मौन रखना श्रेयस्कर है क्योंकि बात करने पर श्वास नलिका खुलेगी ही और भोजन उस ओर भी जा सकता है।
स्वर यन्त्र-स्वरतन्त्री-श्वास नलिका के ऊपरी भाग में अभिकाकल से नीचे ध्वनि उत्पन्न करने वाला प्रधान अवयव ही स्वर यन्त्र कहलाता है। यही ध्वनि यन्त्र भी कहा जाता है। बाहर गले में जा उभरी ग्रन्थि (टेंटुआ) दिखती है वह यही है। स्वर यन्त्र में पतली झिल्ली के बने दो परदे होते हैं। इन्हें ही स्वरतन्त्री कहते। अंग्रेजी में इसे (Vocal Chord) कहा जाता है।
मुखविवर, नासिका विवर और अलिजिह्वा (कौआ)-स्वर यन्त्र के ऊपर ढक्कन (अभिकाकल) होता है। इसके ऊपर एक खाली स्थान हैं जिसे हम चौराहा कह सके हैं। यहां से चार मार्ग (श्वास नलिका,