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1362 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण हजारों साल तक चलेगी और बच्चे हँसेगे। कहेंगे कि कहां हैं हवाईजहाज ? जिनकी तुम बात करते हो? ऐसा मालूम होता है, कहानियां हैं, पुराण-कथाएं हैं, मिथ हैं।"3
णमोकार महामन्त्र की ऐतिहासिकता का सीधा अर्थ है जैन धर्म की ऐतिहासिकता; क्योंकि महामन्त्र वास्तव में जैन धर्म के सभी तत्वों का पुष्कल प्रतीक एवं सूत्र है । धर्म का इतिहास सामान्य इतिहास की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता। इसका प्रमाण मानव जाति की ‘आत्मा में उसके चिर-कालिक विश्वास में होता है। यह इतिहास भावात्मक ही होता है, रूपात्मक बहुत कम।
"धर्म का स्वतन्त्र इतिहास नहीं होता। सम्यक विचार व आचार रूप धर्म हृदय की वस्तु है, जिसका कब, कहां और कैसे उदय, विकास अथवा ह्रास हुआ तथा कैसे विनाश होगा, यह अतिशय ज्ञानी के अतिरिक्त किसी को ज्ञात नहीं। अतः इन्द्रियातीत, अतिसूक्ष्म धर्म का अस्तित्व प्रमाणित करने के लिए धार्मिक महापुरुषों का जीवन और उनका उपदेश ही धर्म का परिचायक हैं। धार्मिक मानवों का इतिहास ही धर्म का इतिहास है।"
इस महामंत्र की ऐतिहासिकता पर इस दष्टि से भी विचार किया जा सकता है कि यह मन्त्र द्रव्याथिक नय से अनादि है तो क्या पूरे पंच 'परमेष्ठियों को अर्थ के स्तर पर मंत्र में मूल रूप में पहली बार में किया गया होगा, अथवा प्रारम्भ में केवल अरिहन्त और सिद्ध परमेष्ठी को ही लिया गया और फिर धीरे-धीरे परवर्ती कालों में बाद के तीन परमेष्ठी मिला लिये गये ! अति प्राचीन या प्राचीनतम उदाहरण या शिलालेख तो यही सिद्ध करते हैं कि अरिहन्त और सिद्धों को ही प्रारम्भ में ग्रहण किया गया था। इसके भी कारण हो सकते हैं । वास्तव में ये दो ही ईश्वर या देव रूप हैं, शेष तीन तो अभी साधक ही हैंलक्ष्य के राही हैं। ये तीन गुरु हैं, अभी देव नहीं। अतः उभर कर यह दृष्टि सामने आती है कि द्रव्यार्थिक नय की दृष्टि से भी इस क्रम को स्वीकार किया जा सकता है क्या? वाणी रूप में ढलने पर भी तब यही क्रम आएगा ही। तर्क बड़ा बहरा और दूरगामी होता है। वह रुकना जानता ही नहीं, पर विश्वास उसे थपथपाता है और स्थिरता देता है।