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________________ णमोकार मन्त्र की ऐतिहासिकता 2375 __ अन्ततः इतना ही समझना पर्याप्त होगा कि मन्त्र तो द्रव्यार्थिक नय या अर्थतत्व के आधार पर पूर्ण रूप से अनादि है, हां निर्माण काल में संभव है पद रचना में कुछ अन्तराल रहा हो। परन्तु हमारे समक्ष तो मन्त्र अपनी पूर्ण अवस्था में ही अनादि रूप में मान्य है। हमें उसकी निर्माण अवस्थाओं के तारतम्य के चक्कर में पड़ कर अपनी सम्यक दृष्टि को दूषित नहीं करना है। प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने और अतिप्राचीन तीर्थंकरों ने भी हो सकता है इस मन्त्र की अर्थ और वाणी की पूर्णता समय-समय पर की हो। अतः उन्हीं के द्वारा समग्र रूप में दिया गया मन्त्र ही स्वीकार करना चाहिए। फिर यह भी संभव है कि आरंभ में जो अरिहन्त और सिद्ध परमेष्ठी मात्र का उल्लेख मिलता है, हो सकता उसमें व्यक्ति-विशेष ने उन दो परमेष्ठियों में ही श्रद्धा प्रकट करनी चाही हो, शेष तीन के रहने पर भी उन्हें शामिल न किया हो। अतः वात वहीं पूर्णता और अनन्तता पर पहुंचती है। प्रसिद्ध ग्रन्थ मोक्षमार्ग प्रकाशक के रचयिता पं० टोडरमल जी पंच नमस्कार मन्त्र की ऐतिहासिकता का संकेत करते हुए लिखते हैं कि-"अकारादि अक्षर हैं वे अनादि विधन हैं, किसी के किये हुए नहीं हैं। इनका आकार लिखना तो अपनी इच्छा के अनुसार अनेक प्रकार का है, परन्तु जो अक्षर बोलने में आते हैं वे तो सर्वत्र सदा ऐसे ही प्रवर्तते हैं। इसीलिए कहा है कि-"सिद्धोवर्णसामाम्नायः"-इसका अर्थ यह है कि जो अक्षरों का सम्प्रदाय है सो स्वयं सिद्ध है, तथा उन अक्षरों से उत्पन्न सत्यार्थ के प्रकाशक पद उनके समूह का नाम श्रुत है सो भी अनादि निधन हैं।" सन्दर्भ : 1. 'ऐसो पंच णमोकारो'–युवाचार्य महाप्रज्ञ-प्रस्तुति 2. तीर्थंकर-पृ. 77, णमोकार मंत्र विशेषांक-ले० अगरचन्द नाहटा दिस० 1980 3. महावीर वाणी-पृ० 33-ले० भगवान रजनीश । 4. "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" (प्रथम भाग)-१० 5-6 लेखक-आचार्य . श्री हस्तिमल जी महाराज । 5. मोक्षमार्ग प्रकाशक-पृ० 10-लेखक : पं० टोडरमल।
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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