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________________ 1 30 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण शक्ति का अभाव है-अर्थात् जीवन शक्ति को चैतन्य देने वाली अग्नि शक्ति का अभाव है। अतः ऋषियों ने अहं को अहं का रूप दिया-उसमें अग्नि शक्तिवाची 'र' को जोड़ा। इससे जीवात्मा को उठकर प्रमात्मा तक पहुंचने की शक्ति प्राप्त हुई। अतः अहं का विज्ञान बड़ा सुखद आश्चर्य प्रदान करने वाला सिद्ध हुआ। 'अ' प्रपञ्च जीव का बोधक-बन्धन बद्ध जीवन का बोधक और 'ह' शक्तिमय पूर्ण जीव का बोधक है। लेकिन 'र'-क्रियमान क्रिया से युक्त-उद्दीप्त और परम उच्च स्थान में पहुंचे परमात्व तत्त्व का बोधक है। विभिन्न कार्यों के लिए शब्दों को मिलाकर मन्त्र बनाए जाते हैं। मन्त्रों के प्रकार, प्रयोजन, प्रभाव अनेक हैं। उनको विधिवत् समझने और जीवन में उतारने का संकल्प होने पर ही यह मन्त्र विज्ञान स्पष्ट होगा-कार्यकर होगा । जिस प्रकार रसायन शास्त्र में विभिन्न पदार्थों के आनुपातिक मिश्रण से अद्भुत क्रियाएं और रूप प्रकट होते हैं, उसी प्रकार शब्दों की शक्ति समझकर उनका सही मिश्रण करने से उनमें ध्वंसात्मक, आकर्षक, उच्चाटक, वशीकरणात्मक एवं रचनात्मक शक्ति पैदा की जाती है-मन्त्रों में यही बात है। मन्त्र सूक्ष्म रूप हैबीज रूप है जिससे बाह्य वस्तु रूपी वृक्ष उत्पन्न होता है, तो दूसरी ओर लोकोत्तर सुख के द्वार भी खुलते हैं। __ मन्त्र आत्म-ज्ञान और परमात्म सिद्धि का मूल कारण है। परन्तु यह तभी सम्भव हो सकता है जब ज्ञान हृदयस्थ हो जाए और आचरण में ढल जाए। महात्मा गांधी ने उचित ही कहा है-“अगर यह सही है और अनुभव वाक्य है तो समझा जाए कि जो ज्ञान कंठ से नीचे जाता है और हृदयस्थ होता है, वह मनुष्य को बदल देता है। शर्त यह कि वह ज्ञान आत्म-ज्ञान है।"* . x "जब कोई सच्चा ही वचन कहता है, और व्यवहार भी ऐसा ही करता है। हम उसका असर रोज देखते हैं। फिर भी उस मुताबिक न बोलते हैं न करते हैं।" ज्ञान आचरण के बिना व्यर्थ है। उसी प्रकार चरित्र की जड़ * बापू के आशीर्वाद-प० 206-217
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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