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________________ मन्त्र और मन्त्र विज्ञान 25 होकर प्रकट होता है। हर व्यक्ति व्यंजना को ग्रहण नहीं कर पाता है। व्यंजना को ही प्रकारान्तर से ध्वनि कहा गया है। श्री रामचरित मानस के बालकाण्ड में सीताजी की एक सखी जनक वाटिका में आए हए राम और लक्ष्मण को देखकर आनन्दमग्न होकर सीता और अन्य सखियों से कह रही है"देखन बाग कुंअर दोउ आए, वय किसोर सब भांति सुहाए। श्याम गौरि किमि कहौं बखानी, गिरा अनयन नयन बिनु वानी॥"* अर्थात् दो कुमार बाग देखने आए हैं। उनकी किशोरावस्था है, वे प्रत्येक दृष्टि से सुन्दर हैं। वे श्याम और गौरवर्ण के हैं। उनका वर्णन मैं कैसे करूं? वाणी के नैन नहीं और नैन बिना वाणी के हैं। इस चौपाई का सामान्य अर्थ तो स्पष्ट है ही, परन्तु चतुर्थ चरण में जो भाव व्यंजना द्वारा व्यक्त हुआ है, उसे केवल मर्मज्ञ ही समझ सकते हैं। राम और लक्ष्मण के लोकोत्तर रूप को आंखों ने देखा है-अतः आंखें ही पूरी तरह बता सकती हैं, परन्तु आंखों के पास जिह्वा नहीं है, कैसे कहें ? उधर जिह्वा ने देखा नहीं है-देख ही नहीं सकती-कैसे बोले ? सब कुछ कह दिया और लगता है कुछ नहीं कहा। राम-लक्ष्मण का सौन्दर्य अनिर्वचनीय है, मनसा-वाचा परे है। अनुभूति का विषय है। इस ध्वन्यात्मकता को समझे बिना उक्त चरण का आनन्द नहीं आ सकता। यही बात मन्त्र की भाव गरिमा में है। आम आदमी अर्थ के साधारण स्तर की ही जीवन भर परिक्रमा करता रहता है और उसका मन्त्र की आत्मा से तादात्म्य नहीं हो पाता है। ध्वनि का जहां नादमूलक अर्थ है वहां मन्त्र के उच्चारण स्तरों का ध्यान रखकर ही उसका पूरा लाभ लिया जा सकता है। मन्त्र विज्ञान में भक्त की चेतना और मन्त्रोच्चार से उत्पन्न ध्वनि तरंग जब निरन्तर घर्षित होते हैं तो समस्त शरीर, मन और प्राणों में एक अद्भुत कम्पन आस्फालित होता है। धीरे-धीरे इस कम्पन से एक वातावरणमन्त्रमयता का वातावरण निर्मित होता है और भक्त उसमें पूर्णतया लीन हो जाता है। यह लीन होने की सम्पूर्णता ही मन्त्र का साध्य है। * रामचरित मानस-बालकाण्ड-प० 232
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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