________________
2248 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण स्तर, 2. अर्थ का स्तर 3. ध्वनि का स्तर - नाद का स्तर, व्यंजना क्ति का स्तर, 4. सम्मिश्रण - फलितार्थ ।
भाषा का स्तर :
यदि उदाहरण के लिए हम णमोकार मन्त्र को ही लें तो जब पाठक या भक्त पहली बार मन्त्र को पढ़ता है या सुनता है तो वह सामान्यतया मन्त्र का प्रचलित भाषा रूप ही जान पाता है और उसके साथ-साथ सामान्य अर्थ - बोध को जानने के लिए कुछ सचेष्ट होता है । यहां भाषा का अर्थ है रचना का शरीर और उससे प्रकट रूपात्मक या ध्वन्यात्मक सम्मोहन | यह किसी रचना को जानने की पहली और सामान्य स्थिति है ।
अर्थ का स्तर :
दूसरी, तीसरी, चौथी बार जब हम मन्त्र को पढ़ते या जपते हैं और समझने का प्रयत्न करते हैं तो हम शब्दों के स्थूल अर्थ के परिवेश में-परिचित अर्थ के परिवेश में चले जाते हैं । णमोकार मन्त्र में अर्थ के स्तर पर अरिहन्तों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो आदि - अर्थ से हम परिचित होते हैं । इससे हमारा मन्त्र से कुछ गहरा नाता जुड़ता है, परन्तु अभी पूर्णता दूर है । यह स्तर तो एक साधारण एवं अविकसित मस्तिष्क का है । अविकसित मानसिकता 50 वर्ष के व्यक्ति में भी हो सकती है । दूसरी ओर 10 वर्ष का बालक भी प्रत्युत्पन्नमति के कारण मानसिक स्तर पर विकसित हो सकता है । यह तो हम नित्यप्रति देखते ही हैं कि कई व्यक्ति जीवन भर अर्थ के स्थूल स्तर में कोल्हू के बैल की तरह घूमते रहते हैं । उनकी मानसिकता का एक स्तर बन जाता है ।
ध्वनि का स्तर :
काव्य शास्त्र शब्द शक्तियों का विवेचन है । ये शब्द शक्तियां तीन हैं- अमिधा, लक्षणा और व्यंजना । सौन्दर्य प्रधान एवं जीवन की गम्भीर अनुभूति के विषय को प्रायः व्यंजना द्वारा ही प्रकट किया जाता है। इससे उसकी सुन्दरता बढ़ती है और मूल भाव अति प्रभावी