SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26. महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण हमारे आचार्यों, कवियों और महान् पुरुषों ने वाणी की महिमा का बहुविध गान किया हैकबीर-ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय ॥ तुलसी-तुलसी मीठे वचन तें सुख उपजत चहं ओर। वशीकरण इक मन्त्र है, तज दे वचन कठोर ॥ शब्द का दुखात्मक प्रभाव इतना अधिक होता है कि आदमी जीते जी मर जाता है, और शब्द के सुखात्मक प्रभाव में आदमी मरता हआ भी जी उठता है। शब्द ब्रह्म की महिमा अपार है। कहा है कि तलवार का घाव भर सकता है लेकिन वाग्बाण का कभी नहीं। स्पष्ट है कि बाणी में अमत और विष दोनों हैं। समस्त विश्व पर ध्वनि का प्रभाव देखा जा सकता है। वाणी के घातक प्रभाव पर एक प्रसंग प्रस्तुत है एक बार लंदन की एक प्रयोगशाला में वाणी और मनोविज्ञान के दबाव पर एक प्रयोग किया गया। एक व्यक्ति के शरीर के पूरे खून को क्रय किया गया। मूल्य यह था कि उसके परिवार का पूरा भरण-पोषण सरकार करेगी। उस व्यक्ति को लिटा दिया गया और पीछे एक नली द्वारा खून को बूंद-बूंद करके निकालने का काम शुरू हुआ। जब काफी समय हो गया तो डाक्टरों ने कहा कि इतने खून के निकलने के बाद तो इस व्यक्ति को मर ही जाना चाहिए था, आश्चर्य है, शायद दोचार मिनट में मर जाएगा। ये शब्द सुनते ही वह आदमी तुरन्त मर गया। वास्तव में उसके शरीर से रक्त की एक बूंद भी नहीं निकाली गयी थी। बस उसके पीछे से पानी की बूंदें गिरायी जा रही थी। यह मन पर वाणी का और मानसिकता का दबाव था। __मन्त्र की सम्पूर्ण ध्वन्यात्मकता शरीर के कण-कण में व्याप्त होकर आत्मा के भीतरी लोक से सम्पर्क करती है और उसे उसकी विशुद्धता का लोकोत्तर दर्शन कराती है। यह बात सुस्पष्ट है कि मन्त्र विज्ञान में आस्था, परम्परा और इतिहास की आत्मा में प्रवेश करके उसे ज्ञान और विवेक के-प्रत्यक्ष प्रयोग के धरातल पर लाकर स्थिरीकरण कराया जाता है। वैज्ञानिक धरातल पर परीक्षित करके ही कुछ बुद्धि जीवियों में आत्मा का उदय होता है। जैन धर्म में विश्रुत पंच नमस्कार
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy