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________________ प्रश्न१०० सिद्ध परमेष्ठी का प्रतीक रंग लाल है । इसके आधार पर उनकी सर्वश्रेष्ठता सिद्ध कीजिए। उत्तर: जिन सिद्धों ने अपने शुक्ल ध्यान की अग्नि द्वारा समस्त कर्मरूपी ईंधन को समाप्त कर दिया है - भस्म कर दिया है और जो अशरीरी हो गए हैं - उन सिद्धों को नमस्कार हो । जिनका वर्ण तप्त स्वर्ण के समान लाल हो गया है और जो सिद्ध शिला के अधिकारी है उन सिद्धों को नमस्कार हो । सिद्ध परमेष्ठी के नमन के समय हमारे मानस पटल पर वह चित्र उभरना चाहिए जब कि सिद्ध परमेष्टी अष्ट कर्मों का दहन कर निर्मल रक्तवर्ण कुन्दन की भांति दैदीप्यमान हो उठते हैं। हमारे शरीर में रक्त की कमी हो अथवा रक्त में दोष आ गया हो तो णमोसिद्धांण का पंचाक्षरी जाप करना चाहिए । बालसूर्य जैसा लाल वर्ण । लाल वर्ण हमारी आन्तरिक दृष्टि को जागृत. कर हममें अक्षय ऊर्जा भरता है । सिद्दों के सम्बन्ध में एक तथ्य और है जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है । सामान्यतया प्रमुख सात रंग माने जाते हैं। उनमें भी लाल, नील और पीला - ये तीन रंग मौलिक माने जाते हैं । शेष रंग इनके आनुपातिक मिश्रण से बनते हैं। यों तो मिश्रण से फिर सहस्रों रंग बनते हैं। असली तीन रंगों में भी लाल रंग ही मूल है - प्रमुख है । वही ऊष्मा और जीवन का रंग है । इस स्तर पर की सिद्धों भी सर्वोपरि महत्ता सिद्ध होती है। प्रश्न १०१ मूलाधार चक्र अथवा कुंडलिनी शक्ति क्या है, शरीर में कहाँ स्थित है और इसका महामन्त्र की साधना से क्या सम्बन्ध है? मानव शरीर में स्थूल शरीर के नीचे सूक्ष्म शरीर भी है । यह सूक्ष्म शरीर स्वप्न शरीर आदि के रूप में अद्भुत क्रियाएँ करता रहता है । इन शरीरों की ऊपरी - सतह पर ईथर (आकाश वायु शरीर) उत्तर: 82248
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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