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________________ प्रश्न ९९. ३. पश्यन्ती सूक्ष्मतर (व्यंजनात्मक स्तर) ४. परा भाषा सूक्ष्मतम मातृका (नादात्मक अवस्था) परावाणी के स्तर पर ही आत्म साक्षात्कार होता है । इसे ही वेदान्त में नाद ब्रह्म की संज्ञा दी गयी है। उक्त विवेचन का मथितार्थ यह है कि मातृकाशक्ति की पूर्णता स्थूल रूपात्मकता से भावात्मक सात्विक अवस्था प्राप्त करने में है। इस मन्त्र की वैज्ञानिकता को अहं और अहम् शब्दों के विश्लेषण द्वारा समझाइए। णमोकार महामन्त्र की वैज्ञानिकता को समझने के लिए उदाहरण स्वरूप हम अरिहन्त परमेष्ठी वाची अहम् को ले लें । अहं मूल शब्द था । अहं में अ प्रपंच जगत् का प्रारंभ करनेवाला है और ह उसकी लीनता का द्योतक है। अहं में अन्त में है बिन्दु (०) यह लय का प्रतीक है । बिन्दु से ही सृजन और बिन्दु में ही लय है । अब प्रश्न यह उठता है कि सूजन और मरण भी यह यान्त्रिक क्रिया है इसमें जीवन शक्ति का अभाव है अर्थात् जीवन को चैतन्य देनेवाली शक्ति का अभाव है । अतः हमारे मन्त्र दृष्टा ऋषियों ने अहं को अहँ का रूप दिया - उसमें अग्नि-शक्ति धारक 'र' को जोड़ा । इससे जीवात्मा को अर्ध्वगामी होकर निजी परमात्मत्त्व तक पहुँचने की शक्ति प्राप्त हुई । अतः अहं का विज्ञान बड़े सुखद आश्चर्य प्रदान करनेवाला सिद्ध हुआ । 'अ' प्रपंच जीव का बोधक - बन्धन बद्ध जीव का बोधक और 'ह' शक्तिमय पूर्ण जीव का बोधक है । लेकिन '' क्रियमान क्रिया से युक्त उद्दीप्त और उच्चस्थान में स्थित परमात्म तत्व का बोधक है । अब स्पष्ट है कि जीव में अहं मूलक सांसारिकता के कारण उसकी ऊर्ध्वगामिता और अग्निमयता अवरुद्ध रहती है । अहं में '' जुड़ते ही और उसके अहँ बनते ही सब कुछ चैतन्यमय हो जाता है । 82238
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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