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स्पष्टीकरण - साधु परमेष्ठी पूर्ण मुनिव्रत का पालन करनेवाले परम आत्मान्वेषी
हैं; जब कि आचार्य और उपाध्याय मुनि होकर भी मुनि संघ की व्यवस्था और अध्यापन में रत रहते हैं । उन्हें निजी साधना का अवसर कम प्राप्त होता है, कभी कभी कर्तव्यपालन के कारण उनमें राग द्वेष भी हो जाता है । इसलिए वे संघ-दायित्व से मुक्त होकर पुनः दीक्षा लेते हैं । वस्तुत: आचार्य और उपाध्याय मुनि होते हैं । उनमें विशुद्धता होती है । अत: उनका पद जो है, वह ठीक है ।
उनके ३६ गुण है जो साधु से अधिक है; यह भी पुष्ट मत है । प्रश्न ४८ णमोकार मन्त्र सर्वश्रेष्ठ क्यों है? उत्तर : १. यह मन्त्र गुण नमन का मन्त्र है ।
२. समस्त जिनवाणी का सार है । ३. मूलत: आध्यात्मिक है ।
पूर्ण समभाव मय है। ५. किसी प्रकार की कामना इसमें नहीं है ।
६. यह सहज ग्राह्य है। प्रश्न ४९ इस मन्त्र के प्रभाव से किसका कुष्ट रोग नष्ट हुआ था?
इस महामन्त्र के प्रभाव से राजा श्रीपाल का कुष्ट रोग दूर हुआ था। स्पष्टीकरण - श्रीपाल की बाल्यावस्था में ही उसके पिता राजा सिंह रथ की मृत्यु हो गयी । श्रीपाल के चाचा ने तुरन्त राज्य पर अधिकार कर लिया । श्रीपाल की माँ अपनी और अपने पुत्र की जान बचाने के लिए मन्त्रियों की सहायता से निकल भागी। जंगलों में भटकते भटकते श्रीपाल को .कुष्ट रोग हो गया । किसी तरह माता - पुत्र उज्जैन नगरी पहुँचे । उज्जैन के राजा की दो पुत्रियाँ थीं - सुर सुन्दरी और मैना सुन्दरी । सुर सुन्दरी - हर बात में अपने पिता का झूठा समर्थन
उत्तर:
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