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________________ करके लाभ उठा लेती थी, जब कि मैना सुन्दरी अपने पिता का आदर करते हुए भी सत्य का ही समर्थन करती थी । एक बार राजा ने भरी सभा में अपनी दोनों बेटियों को बुलाया और पूछा - " तुम्हें सब प्रकार के सुख देनेवाला कौन है?" सुर सुन्दरी ने उत्तर दिया, "पूज्य पिताजी, मैं जो कुछ भी हूँ, आपकी ही कृपा से हूँ । आप ही मेरे भाग्य विधाता है ।" इस उत्तर से राजा का अहंकार तुष्ट हुआ और उसने हर्ष प्रकट किया । अब मैना सुन्दरी को उत्तर देना था । उसने कहा, "पिताजी, मैं जो कुछ भी हूँ, अपने पूर्व जन्म के शुभाशुभ कर्मों के कारण हूँ । आप भी जो कुछ हैं अपने शुभ कर्मों के कारण हैं । मेरा और आपका पिता-पुत्री का नाता तो निमित्त मात्र है ।" इस उत्तर से पिता राजा को बहुत गुस्सा आया । राजा ने सुर सुन्दरी का विवाह एक राजकुमार से किया और दहेज में बहुत अधिक धन दिया । मैना सुन्दरी का विवाह कुष्ट रोगी श्रीपाल से किया और दहेज में कुछ नहीं दिया । राजा ने कहा, “अब देख अपने कर्मों का फल । अपनी किस्मत को बदल कर दिखाना । " मैना सुन्दरी ने विनयपूर्वक अपने पिता से कहा, “पिताजी, मैं आपको दोष नहीं देती हूँ । मेरे भाग्य में होगा तो अच्छा समय आएगा ही । मैं धर्म पर और महामंत्र पर अटूट श्रद्धा रखती हूँ ।" बस मैना सुन्दरी ने अपने पति की पूरी सेवा करना प्रारम्भ कर दिया । वह नित्यप्रति महामन्त्र का जाप करने लगी और भगवान के गन्धोदक से पति को चर्चित भी करने लगी। पति के समीप बैठ कर महामन्त्र का पाठ करती रहती । धीरे-धीरे श्रीपाल का कुष्ट रोग समाप्त हो गया । उसके मन्त्रियों ने प्रयत्न करके उसका पता 1932
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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