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________________ उत्तर: प्रश्न ४४. आचार्य जयसेन ने महामन्त्र के द्वैत और अद्वैत ये दो भेद किये है? स्पष्ट कीजिए। इस महामन्त्र के सामान्यतया दो भाग हैं - प्रथम भाग ५ पदों वाला आध्यात्मिक भाग है । इसमें पंच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है । द्वितीय भाग पद्य बद्ध चूलिका (४ पद) है । इसमें इस मन्त्र के फल का वर्णन है। .. .. . जहाँ भक्त मन्त्र में डूब जाता है वहाँ अद्वैत भाव है जहाँ पृथकता (मैं और परमेष्ठी अलग अलग हैं) का भाव है वह द्वैत है। प्रश्न ४५. णमो पद किस अर्थ.का द्योतक है? उत्तर : . . णमो पद पूजार्थक, भक्ति और विनय परक है। प्रश्न ४६. द्रव्य नमस्कार और भाव नमस्कार में क्या अन्तर है? उत्तर : द्रव्य का अर्थ है स्थूल, भौतिक एवं प्रकट । भाव का अर्थ है भावात्मक, आत्मिक एवं मानसिक यह प्रकट रूप से द्रष्टव्य नहीं है, शरीर के अंग प्रत्यंगों द्वारा, आरती, भजन, पूजन द्वारा जो भक्ति या नमन होता है वह द्रव्य नमन है । इसमें विशुद्ध भावों का योग नहीं होता, अत: यह प्रायः अकिंचित्कर ही रहता है । भाव नमस्कार ही उत्तम नमस्कार है । इसमें भक्त शुद्ध मन के साथ प्रभु का नमन करता है । यह और भी अधिक श्रेयस्कर होगा यदि द्रव्य-भाव मय नमन किया जाय । इससे प्रभावना, चित्त की एकाग्रता और प्रभावक वातावरण की सृष्टि होती है । भक्त संसारी है - चंचल मन वाला है इसे द्रव्य नमस्कार से. पर्याप्त शक्ति और दिशा मिलती है। प्रश्न ४७ निश्चय नय की दृष्टि से साधु परमेष्ठी का स्थान प्रथम है या आचार्य और उपाध्याय का? अरिहन्त और सिद्ध परमेष्ठी के पदक्रम में जो व्यावहारिक दृष्टि अपनायी गयी है, वही दृष्टि आचार्य - उपाध्याय और साधु परमेडी के विषय में है। 31913
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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