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________________ प्रश्न ४१. इन्हें घातिया क्यों कहते हैं? उत्तर : ये आत्मा के मूल चारों गुणों (अनन्त दर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य) को नष्ट करते हैं - घातते हैं अतः इन्हें घातिया कर्म कहते हैं। प्रश्न ४२. मोहनीय कर्म सर्वाधिक शक्तिशाली क्यों है? उत्तर : कर्मों का राजा है मोहनीय कर्म रूपी नृपति और उसके मन्त्री है - रागद्वेष । मोहनीय की शक्ति हड्डी के समान कठोर और अत्यधिक है । यह कर्म आत्मा की विवेक शक्ति को भ्रान्त करता है । इसके उदय में जीव का सत्यासत्य विवेक समाप्त हो जाता है । मोहनीय के क्षय से अक्षय चारित्र प्राप्त होता है । क्षायिक सम्यक्त्व जो मोक्ष का कारण है इसी कर्म के क्षय से प्राप्त होता है। प्रश्न - ४३ अरिहन्त और सिद्ध परमेष्ठी में समानता और अन्तर समझाइए। उत्तर : अरिहन्त १. भावमोक्ष १. भाव एवं द्रव्य शरीर मोक्ष .. २. ४ घातिया कर्म नष्ट २. आठों कर्म नष्ट - ३. सशरीर - संसार में ३. निराकार - मोक्ष में ४. संसारी जीवों को उपदेश ४. परोक्षतः प्रेरणा .श्रवण का प्रत्यक्ष लाभ ५. भाव एवं व्यवहार के । ५. निश्चयतः सिद्ध परमेष्ठी धरातल पर मन्त्र में ही प्रथम है। - - .. प्राथमिकता .. ६. मूल (आत्मिक) चार ६. मूल आठ कर्मों के क्षय . गुणों के धारक हैं। .. से उदित आठ गुणों के . धारक हैं। सिद्ध 190
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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