________________
प्रश्न ३७. इस महामन्त्र में समस्त देवनागरी वर्णमाला गर्भित है
कैसे ?
उत्तर
-
व्यंजन :
स्वर १६ ये संयोजन क्रिया से प्राप्त होते हैं - सीधे नहीं यथा ई, ऋ, लृ, ऐ, औ, अः इन्हें इनके मूल ह्रस्व रूप से या बीजक रूप से प्राप्त किया जा सकता है । यथा इइ ई । पुनरुक्त स्वरों को पृथक कर देने पर पूरे १६ स्वर मिलते हैं ।
=
प्रश्न ३८. इस मन्त्र में गुरु परमेष्ठी ३ हैं या ५ कैसे?
उत्तर :
उत्तर :
प्रश्न ३९. पंच परमेष्ठी पंच परमेष्ठी बोलिए ।
उत्तर :
-
ध्वनि सिद्धान्त के अनुसार उच्चारण स्थान की एकता के कारण कोई भी वर्गाक्षर अपने पूरे वर्ग का प्रतिनिधित्व कर सकता है । व्यंजन ३३ हैं । क्ष, त्र,ज्ञ संयुक्त व्यंजन हैं । अतः गणना में नहीं लिया गया है । अंशान्वय से क्, त्, ज के रूप में ये भी मन्त्र में हैं ही ।
1
·
इस महामन्त्र में गुरु परमेष्ठी ३ है - आचार्य उपाध्याय और साधु । आरम्भ के दो परमेष्ठी तो देव (भगवान) हैं । देव देते हैं और शिक्षित करते हैं । देव परमेष्ठी भाव द्रव्य मोक्ष वाले हैं। शेष तीन अभी संसार में हैं, परन्तु वे मोक्ष पथ के पथिक हैं । प्रारम्भ के दो परोक्ष प्रेरणा देते हैं - शेष तीन प्रत्यक्ष प्रेरणा देते हैं । आदि के दो परम गुरु हैं । गुरुओं के भी गुरू हैं - गुरूणां गुरुः । आरती की आरंभ की दो पंक्तियाँ
-
यह विधि मंगल आरति कीजे ।
पंच परम पद भज सुख लीजे ॥
प्रश्न ४०. अरिहन्त परमेष्ठी किन घातिया कर्मों का क्षय कर चुके
हैं?
चार घातिया कर्म - ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय और
अन्तराय ।
189