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उत्तर
७ नहा ।
प्रश्न ११ आचार्य परमेष्ठी क्या करते हैं?
आचार्य (साधु) परमेष्ठी स्वयं पाँच प्रकार के आचार (दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य) का पालन करता है। वह संध के सभी साधुओं से आचार पालन कराता है । दीक्षा देता है । व्रत भंग होने पर प्रायश्चिन्त का आदेश देता है । आचार्य मुनिसंध का
प्रमुख होता है । साधुत्व सम्पन्न आचार्य ही गुरु है । प्रश्न १२ उपाध्याय परमेष्ठी कौन हैं - क्या करते हैं?
उपाध्याय परमेष्ठी जिनवासी के बारह अंगों का ज्ञाता और अध्यापन में दक्ष होता है । आचार्य के सभी गुण उपाध्याय में विद्यमान रहते हैं । उपाध्याय स्यं सदाचार सम्पन्न होता है । वह
शास्त्रों को ही पढ़ाता है, इतर कुछ नहीं । प्रश्न १३ साधु परमेष्ठी की प्रतिनिधि विशेषताएं बताइए।
१. लंगोटी धारी एलक पद में सफलता के बाद दिगम्बर
मुनि मुद्रा धारण की जाती है। २. विषय वासना रहित, निरारम्भ, अपरिग्रही तथा ज्ञान
ध्यान में तत्पर तपस्वी साधु होते हैं। साधु के २८ मूलगुण ५ महाव्रत ५ समिति, ५ . इन्द्रियनिग्रह, ६ आवश्यक, केशलों च, अचेलकत्त्व. अस्थान, भूमिशयन, अदन्तधावन, खडे होकर भोजन, एक बार भोजन । सच्चे साधु में आत्मिक पवित्रता और भीतरी सहजता अनिवार्य है। 'साधु को मूलगुणों (२८) का निरति चार पालन अनिवार्य है - इनके बिना साधुत्त्व नहीं।
उत्तर
१.
आप्ते नोच्छिन्नदोषेण सर्वज्ञेनागमेषिना। __ भवितव्यं नियोगेन नान्यथा हयाप्तता भवेत ।।
रत्नकरण श्रावकाचोर ५
1792