________________
प्रश्न ८आ नवकार मन्त्र के प्रथम ५ पद और अन्तिम चार पदों
का अलग २ महत्व क्या है?.....
उत्तर:
प्रथम पाँच पद तो मूल मन्त्र के हैं जो आध्यात्मिक ऊर्जा का जागरण कर भक्त को मोक्षमार्ग में लीन कर देते हैं।
बाद के चार पद भी कुछ भक्त मन्त्र का ही एक भाग मानते हैं । वस्तुः तः वह भाग चूलिका है, बाद में रचा गया है और मन्त्र का फल द्योतक है । व्यक्तिगत साधना में तो मूल पाठ ही श्रेयस्कर है । सामूहिक मंगलपाठ में चूलिका भाग भी पढ़ा जाता है . उत्साह और श्रेय का योग बनता है।
उत्तर
प्रश्न ९. मूल मन्त्र का पाठ करना चाहिए या चूलिका का भी?
अध्यात्म की दृष्टि से मूल मन्त्र का एकाग्र भाव से पाठ करना चाहिए । चूलिका तो मन्त्र का सहज फल है जो प्राप्त होगा ही। चूलिका को मिलकर ही पूर्णमहामन्त्र बनता है ऐसी भी प्रतिष्ठित
मान्यता है। प्रश्न १० अरिहन्त और सिद्ध परमेष्ठी में क्या अन्तर है?
दोनों में योग्यता और भाव के धरातल पर कोई अन्तर नहीं है । दोनों परम पदस्थ हैं । सिद्ध परमेष्ठी आठों कर्मों का नाश कर अशरीरी मुक्तात्मा हो चुके हैं तो अरिहन्त परमेष्ठी अभी चार घातिया कर्मों का क्षय कर सशरीरी हैं । उनका अत्यल्प काल में मोक्ष सुनिश्चित है । दोनों में अन्तर केवल औपचारिक है - वास्तविक नहीं । 'आप्तता के लिए वीतरागता, सर्वज्ञत्व और हितोपदेश अनिवार्य है । यह अरिहन्त में है । आत्मा के सभी गुण चार घातिया कर्मो के नष्ट होते ही प्रकट हो जाते हैं । अत: दोनों में गुणात्मक समानता है।
उत्तर
21788