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मन यदि स्वस्थ है तो वह बड़े-से-बड़े दुखका गम कोसहज रूप से सह लेता है। योग हमारी मानसिक रूग्णता को रोकता है और उसे आंतरिक विकास की ओर अग्रसर करता है। "योगश्चित्तवृत्ति निरोधः” चित्त की चंचलता को रोकना योग है। जैन शास्त्रों में योग के लिए ध्यान शब्द का प्रयोग होता है। योग के 8 अंग माने गये हैं-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। णमोकार महामंत्र का योग से गहरा संबंध है। योग साधना से हम शरीर और मन को सुस्थिर करके शांत चित्त से मंत्राराधना कर सकते हैं। योग-साधना और मंत्राराधना कामजयी व्यक्ति ही कर सकता है। योग से कामजय और कामजय से मंत्रसिद्धि संभव है। प्रश्न आस्था का
जप के साथ जुड़ा एक प्रश्न है आस्था का |...ध्वनि में आज विज्ञान ने जो खोजे की हैं, निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं, जिन रहस्यों का उद्घाटन किया है, वे मनुष्य की आस्था को पुष्ट बनाने वाले हैं। संगीत इसके परिवार का ही एक सदस्य हे। संगीत भी एक ध्वनि का प्रकम्पन है। एक प्रकार का गीत गाया, लोग झूम उठे, दूसरे प्रकार का गया लोग उदास हो उठे-ध्वनि प्रकम्पनों का प्रयोग मस्तिष्क की धारा बदल देता है। शब्द और ध्वनि के महत्त्व को संगीत की स्वर लहरियों में पहचाना जा सकता है। मंत्र ध्वनि में संगीत से भी अधिक चमत्कारी प्रभाव होता है। प्राकृतिक चिकित्सा और महामंत्र णमोकार
यह सृष्टि पंचभूतों (तत्त्वों) से निर्मित है। ये पाँच तत्त्व जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश हैं। इन्हीं पंच तत्त्वों के आनुपातिक सम्मिश्रण से समस्त प्राणी-जगत बना है। जब यह अनुपात बिगड़ता है अर्थात् कोई तत्त्व कम और कोई अधिक हो जाता है, तब हम अस्वस्थ (रोगी) हो जाते हैं और हमारा शरीर और मन तरह-तरह से अवांछित आचरण करने लगते हैं। जब धीरे-धीरे हम पुनः प्राकृतिक अनुपात में आ जाते हैं तो स्वस्थ एवं पुष्ट-प्रसन्न हो जाते हैं। संसार के सभी प्राणी जब इन्द्रिय-लोलुपता और कुत्सितहीन स्तरीय मनोभावों
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