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________________ ह-शांति, पुष्टिदायक, मंगलीक कार्यों में सहायक, उत्पादक। उच्चारण स्थान-कंठ ता-आकर्षक बीज, सर्वार्थसिद्धि प्रदायक सारस्वत बीज युक्त | उच्चारण स्थान-दंत, तत्त्व-वायु। णं-पीतवर्ण, सुख दायक, परमकुंडली युक्त शक्तिसूचक, मूर्धा, तत्त्व-आकाश। निष्कर्ष-णमो अरिहंताणं-पद के शक्ति, तत्त्व, उच्चारण स्थान और ध्वनितरंगपरक विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि इसमें आकाशतत्त्व, शक्ति, लौकिक-पारलौकिक शक्तियों और सिद्धि बीजों की प्रधानता है। ध्वनितरंग मूर्धामय उच्चारण के कारण उक्त गुणों को अमृतमय कर देती है। इस पद के पाठ से भक्त अरिहंत परमेष्ठी का अपनी आत्मा में साक्षात्कार कर लेता है। यह ध्वनितरंग का स्फोटात्मक प्रभाव है। णमो सिद्धाणं-यह पद भक्त की पूर्णनिष्ठा के साथ पूर्णता को ध्वनित करता है। इससे रक्त शुद्धि, वृद्धि और विचारों में अमृत तत्त्व भर जाता है। णमो आइस्यिाणं-यह पद अनुशासन, धैर्य और आचार को अपराजेय बनाता है। भक्त में नेतृत्व की क्षमता भरता है। विरोधों को शमित करता है। णमो उवज्झायाणं-यह पद विद्या और बुद्धि में अपार वृद्धि करता है। स्वाध्याय में अधिकाधिक रुचि उत्पन्न करता है। सत्-असत् को परखने की अद्भुत शक्ति प्रदान करता है। समस्याओं का सही समाधान सुझाता है। णमो लोए सव्वसाहूणं-यह अनथक साधना का प्रतीक है। चारित्र्य, संयम एवं कर्म-शत्रुओं से संघर्ष इस पद की प्रमुखता है। साधु परमेष्ठी उत्कृष्ट तपस्वी और व्रती होते हैं। वे आदर्श जीवन : जीते हैं। इस पद से भक्त में कर्मठता एवं धैर्य की प्रतिष्ठा होती है। उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि यह महामंत्र पारलौकिक एवं 21693
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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