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फिर निजी तन्मयता में जो आनंद है वह लोकोत्तर है। ज्ञान भक्ति की आँख है और भक्ति ज्ञान का हृदय हैं। दौलत राम जी ने छहढाला (चौथी ढाल-दूसरा पद्य) में ज्ञान की महत्ता इस प्रकार स्पष्ट की है
कोटि जन्म तप तप, ज्ञान बिन कर्म झएँ जे। ज्ञानी के छिन माँहि त्रिगुप्ति ते सहज टरै ते।।
मुनिव्रत धार अनन्त बार ग्रैबिक उपजायो। पै निज आतम ज्ञान बिना सुख लेश न पायौ। सम्यग्दर्शन भक्ति की आत्मा है और है मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी। इसके बिना ज्ञान और चरित्र पूर्ण नहीं बनते। सम्यग्दर्शन का अर्थ है-यथार्थ की सही और पक्की परख । स्व और पर की भेदबुद्धि। .
सुदीर्घ साधना के पश्चात् किसी योगी या ऋषि की मूलाधार चक्र से उद्भूत एवं अनहत रूप में सहस्त्रार चक्र से प्रस्फुटित शब्दात्मक ध्वनिपिण्ड मंत्र बनता है। साधारण शब्दावली मंत्रपूत होकर अपार शक्तिशाली बन जाती है। मंत्र तो अनादि अनंत है, उसे समय-समय पर लोकवाणी में अवतरित होना पड़ता है। णमोकार मंत्र का ध्वन्यात्मक विश्लेषण एवं निष्कर्ष णमो ण-शक्ति प्रदाता। आकाश बीजों में प्रधान । उच्चारण
स्थान मूर्धा-अमृत स्थल। मो-सिद्धिप्रदायक । पारलौकिक सिद्धियों का प्रदाता। संतान
प्राप्ति में सहायक । म-ओष्ठ, ओ-अर्थोष्ठ अरिहंताणं अ अव्यय (अविनश्वर) व्यापक, आत्मा की विशुद्धता का
सूचक, प्राण बी, का जनक। उच्चारण स्थान-कण्ठ । तत्त्व-वायु, सूर्यग्रह, स्वर्णवर्ण, आकार-विशाल व्यापकता। रि-शक्तिकेद्र, कार्य साधक, समस्त प्रधान बीजों का जनक । उच्चारण स्थान-मूर्धा, अमृत केंद्र, अग्नि तत्त्व। इ-शक्ति, गति, लक्ष्मी प्राप्ति । उच्चारण स्थान तालु, तत्त्व अग्नि ।
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