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________________ यह संसार के सुख-और मोक्ष का प्रदाता है। ऐसे महान् को पुनः पुनः नमस्कार हो। श्रमण सूक्त का 12वाँ पद्य ॐ को णमोकार महामंत्र का सार या बीज घोषित करता है "अरिहंता असरीरा, आइरिया उवज्झया मुणिणो। पंचक्खर निप्पण्णो, ओंकारो पंच परमेट्ठी ।।" अर्थात अरिहंत का अ, सिद्ध-अशरीरी का अ, आचार्य का आ, उपाध्याय का उ, साधु-मुनि का म् सुझाव एवं स्पष्टीकरण-ॐ में पंच परमेष्ठी इतने सांकेतिक, संक्षिप्त एवं अति प्रतीकात्मक हो जाते हैं कि भक्त का ध्यान उनके गुणों और आकृति सौंदर्य पर नहीं जा पाता है और तादात्म्य या तन्मयता भी स्थिति नहीं बन पाती है। मनोजयी मुनि एवं योगी इसके अपवाद हो सकते है। अतः सामान्यतया महामंत्र का जाप ही श्रेयस्कर होगा। यह सुझाव व्यक्तिगत हो सकता है। ॐ शब्द के 19 अर्थ (पाणिनि व्याकरण) 1. रक्षा-सम्पूर्ण विश्व की सभी प्रकार से रक्षा करने वाला। 2. गति-विश्व को गति देने वाला । (सर्वव्यापी अतः स्वयं स्थिर) 3. कान्ति-उज्ज्वलता, आभा-प्रदायक। 4. प्रीति-प्रेम, सद्भाव, आनंद-प्रदाता। 5. तृप्ति-भक्तों को कार्यों में इच्छित फल-प्रदातां । 6. अवगम-भक्तों-जीवों के मनोभावों का ज्ञाता। 7. प्रवेश--सर्वव्यापी, सूक्ष्म, सब में अंतःस्यूत । 8. श्रवण-दुखियों की पुकार सुनने वाला, सुनने की शक्ति देने वाला। 9. स्वाम्यर्थ-सृष्टि का नियामक, शासक। 10. याचन-प्रार्थनीय, प्रदाता। 11. क्रिया-सुष्टि रचना में लीनं, निरन्तर क्रियारत। 21618
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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