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12. इच्छा--स्वयं निष्काम परंतु भक्तों का हित करने वाला। 13. दीप्ति-ज्ञान-प्रकाश से भरपूर 14. अवाप्ति-सहज, सुलभ। 15. आलिंगन-विश्व को अपनापन देने वाला। 16. हिंसा-दुष्टों का दमन करने वाला। 17. दान-भक्तों को शक्ति, पुष्ट इन्द्रियाँ और बुद्धि देने वाला। 18. भाग-उचित वितरण करने वाला। 19. वृद्धि-प्रकृति का संवर्धक-रक्षक । _ महामंत्र णमोकार प्रतीक शैली में है। अर्थात् महान् अर्थ एवं भाव को एक सामान्य जातिवाचक संज्ञा के रूप में सांकेतिक शैली में प्रस्तुत किया गया है। ध्यातव्य यह है कि ये प्रतीक आवश्यक संदर्भ के साथ फैलते हैं। उदाहरण के लिए रंग, ध्वनि एवं योग के सन्दर्भ में ये अपनी व्यापकता पृथक-पृथक प्रकट करते हैं। अब हम रंग विज्ञान के संदर्भ में इन्हें देखे। पंच-परमेष्ठी पाँच प्रतीक रंगों में प्रतिष्ठित हैं
. परमेष्ठी प्रतीक रंग प्रभाव (गुण) 1. अरिहन्त श्वेत वर्ण मानसिक पवित्रता निरोगता 2. सिद्ध लाल वर्ण आवश्यक उष्णता, चैतन्य 3. आचार्य पीत वर्ण हृदय रक्षाकारी 4. उपाध्याय नील वर्ण चित्त-शांति 5. साधु श्याम वर्ण अशुभ से संघर्ष की शक्ति
लाल और नीला ये दो रंग सृष्टि के मूल रंग हैं। इनके आनुपातिक मिश्रण से अन्य सभी रंग बनते हैं। ये रंग सुख, समृद्धि
और चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रंग चिकित्सा का लाभ महामंत्र में निहित सम्बद्ध परमेष्ठी का जाप करने से बहुत अधिक होगा। रंगों के आधार से महामंत्र को समझने में सुविधा होती है। तो दूसरी ओर रंगों का भी पूरा महत्त्व ज्ञात हो जाता
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