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है। प्रायः देखा यह जाता है कि हम प्रभु, मंत्र या स्तोत्र से लाभ भी लेना चाहते हैं और विश्वास या श्रद्धा भी पूरी नहीं है। कभी-कभी हम डाक्टर या वैद्य से इलाज भी कराते हैं और मंत्र का लाभ लेने का उपक्रम भी करते रहते है। मन अर्ध-आस्तिक . रहता है। संशयात्मा विनश्यति-यह जानते ही नहीं हैं। परंतु यह
भी अनुभूत सत्य है कि मानव-आज का मानव खतरे (Risk) से . बचकर जीना चाहता है। 2. महामंत्र की साधना से, नियमित जाप करने से आरूढ़ संकट से . मुक्ति प्राप्त होती है। जाप या नियमित पाठ विशुद्ध मन से होना
अनिवार्य है। यह नमस्कार मंत्र चमत्कारी तो है ही, इसका प्रत्येक, पद, प्रत्येक अक्षर ग्रह, तत्त्व, रंग एवं आकार के आधार पर समझे जाने पर भक्त पर प्रकट रूप से व्यापक प्रभाव डालते हैं। इसका बीज रूप ओम् है। प्रणव ओम् का पर्याय है। इसके
द्वारा भी रोग-मुक्ति एवं सुरक्षा-प्राप्ति होती है। 3. ओम भारत के वैदिक, श्रमण (जैन) एवं बौद्ध धर्मों में तथा विश्व
के अन्य बड़े धर्मों में अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मान्य है। ओम् के उच्चरित, लिखित एवं अर्थपरक तीन-तीन रूप हैं। जैनों में तो तीर्थंकरों की दिव्यवाणी ही ओंकारात्मक होकर खिरती थी। अतः
आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के समय से तो ओम् जैनों में है ही।' ओम के तीन रूप लिखित रूप .. .. ........... . . 1. ॐ-यह एकाक्षरी ओम् है। यह अनादि, स्वयम्भू, ईश्वरवाची तथा - यज्ञों और वेदों में मान्य है। इसी को प्रणव भी कहा गया है। 2. ओम्-यह व्याकरण सम्मत प्रकृति प्रत्यय प्रधान ओम है। यह भी
एकाक्षरी. है। यह अनूक्षणे धातु से निष्पन्न 19 अर्थों वालो ओम्
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ओऽम्-यह पृथक-पृथक् तीन अक्षरों से बना है'अ+उ+म्। यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश वाची है। .
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