________________
महामंत्र णमोकार और चिकित्सा विज्ञान
मानव अनंत शक्तियो का अक्षय कोश है, वह अपनी साधना से स्वयं परमात्मत्व प्राप्त कर सकता है। वह आत्मा के स्तर पर चिर किशोर, अजर और अमर है। परंतु इस अंतिम सत्य के बावजूद अभी आत्मा कर्मबद्ध, संसारी और पराधीन है, दुर्बल है। उसे अपने आवरणों को हटाना और नष्ट करना ही होगा। इस कठोर और नग्न सत्य को ध्यान में रखकर हमें एक क्रमबद्ध एवं संतुलित जीवन पद्धति स्वीकार करनी ही होगी। हमें अपनी निजी क्षमता के साथ इतर मानवीय एवं दैवी सहायता पर निर्भर करना ही होगा । आहार, विद्या, स्वास्थ्य एवं उज्ज्वल मनोभावों के लिए हम विद्वान, डाक्टर एवं संतों से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार दैवी शक्ति सम्पन्न मंत्रों और स्तोत्रों से भी हमें संरक्षण मिलता है। इस दिशा में महामंत्र णमोकार की महिमा अनुपम है, यह निर्विवाद है । इस अनाद्यनन्त महामंत्र के विषम में कुछ तथ्य ध्यातव्य हैं।
महामंत्र की अर्थ-चेतना अर्थात् सामान्य नमस्कार मूलक अर्थ से हमें आत्मोद्धार रूपी भाव चेतना में उतरना होगा और नित्य-प्रति अपने शरीर, वाणी और मन की गतिविधि को उदात्त बनाना होगा । पंच परमेष्ठी आत्मा के स्तर पर समान हैं, फिर भी अरिहंत और सिद्ध देव परमेष्ठी है तो शेष तीन परमेष्ठी गुरु परमेष्ठी हैं। ये मुक्ति के संकल्पी हैं। अभी संसारी हैं। संकल्प के धरातल पर समान हैं। सभी परमेष्ठी कर्मनाश, शत्रुनाश, संसारनाश और मुक्ति-लक्ष्य के स्तर पर समान है।
महामंत्र प्रमुख रूप से आध्यात्मिक उन्नयन का साधन है । वह गौण रूप से प्रभावी स्तर पर सांसारिक संतुलन - दाता और भक्तों का संकट मोचक भी है। यहाँ प्रश्न उठता है कि क्या पंच परमेष्ठी स्वयं भक्तों का कष्ट दूर करते हैं। उत्तर है कि नहीं । परमेष्ठियों के गुणों और कार्यों से प्रेरणा पाकर भक्त स्वयं में अपार बल और साहस का