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________________ 2 1568 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक बन्षेपण मुनियों एवं तीर्थंकरों के महान कार्यों और आदर्शों से प्रेरणा लेते हैं। मन्त्र तो अन्ततः अनादि अनन्त हैं। तीर्थंकरों ने भी इनसे ही अपना तीर्थ पाया है। जब हमें किसी मंगल की, किसी लोकोत्तम की शरण लेनी है, तो स्वाभाविक है कि हम महानतम को ही अपना रक्षक और आराध्य बनाएंगे और हमारा ध्यान-हमारी दृष्टि महामन्त्र णमोकार पर ही जाएगी। स्वयं की संकीर्णता और सांसारिक स्वार्थपरता को त्यागकर हमें अपने ही विराट में उतरना होगा-तभी महामन्त्र से हमारा भीतरी नाता जुड़ेगा। महामन्त्र तक पहुंचने के लिए हमें मन्त्र (शद्ध-चित्त) तो बनाना ही होगा। अन्ततः इस महामन्त्र के माहात्म्य एवं प्रभाव के विषय में अत्यन्त प्रसिद्ध आर्षवाणी प्रस्तुत है "हरइ दुहं कुणइ सुहं, जणइ जसं सोसए भव समुदई । इह लोए पर लोए, सुहाण मूलं गमुक्करो।" अर्थात् यह नवकार मन्त्र दुःखों को हरण करने वाला, सुखों का प्रदाता, यशदाता और भवसागर का शोषण करने वाला है। इस लोक और परलोक.में सुख का मूल यही नवकार है। .. ___ "भोयण समये समणे, वि बोहणे-पवेसणे-भये-बसणे। - पंच नमुक्कारं खलु, समरिज्जा. सव्वकालंपि॥" । अर्थात् भोजन के समय, सोते समय, जागते समय, निवास स्थान में प्रवेश के समय, भय प्राप्ति के समय, कष्ट के समय इस महामन्त्र का स्मरण करने से मन वांछित फल प्राप्त होता है। __ महामन्त्र णमोकार मानव ही नहीं अपितु प्राणी मात्र के इहलोक और परलोक का सबसे बड़ा रक्षक एवं निर्देष्टा है। इस लोक में विवेकपूर्ण जीवन जीते हुए मानव अपना अन्तिम लक्ष्य आत्मा की विशद्ध अवस्था इस मन्त्र से प्राप्त कर सकता है-यही इस मन्त्र का चरम लक्ष्य भी है। "जिण सासणस्स सारो, चदुरस पुण्याण जे समुद्वारो। जस्स मणे नव कारो, संसारो तत्स कि कुणा।" अर्थात् नवकार जिन शासन का सार है। चौदह पर्व का उद्धार है। यह मन्त्र जिसके मन में स्थिर है संसार उसका क्या कर सकता है.. अर्थात् कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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