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षमोकार मन्त्र का माहात्म्य एवं प्रभाव 2 1558 की राह मिली। कुछ समय से नियमित जाप बन्द हो गया; फिर भी श्रद्धा के कारण यदाकदा जपंता हूं। आश्चर्यजनक अनुभव हो रहा है कि जिस-जिस दिन मैं इस मन्त्र का जाप करता हूं, कोई न कोई अप्रत्याशित संकट आ जाता है। -डॉ० मांगीलाल कोठारी (51 वर्ष) इन्दौर मथितार्थ
इस सम्पूर्ण निबन्ध का आधार भक्तों का महामन्त्र णमोकार पर अटूट विश्वास है-तर्कातीत शंकातीत विश्वास है। उनके मन्त्र सम्बन्धी अनुभव ताकिकों और नास्तिकों को मिथ्या अथवा आकस्मिक लग सकते हैं। ___ मैं केवल इतना ही कहना चाहता हूं कि हम मनोविज्ञान और अध्यात्म को तो मानते ही हैं। कम से कम मानसिकता और भावनात्मकमा को तो मानते ही हैं। साहित्य के शृंगार, करुण, वीर, रौद्र आदि नव रसों को भी अपने जीवन में घटित होते देखते ही हैं । यह सब मूलतः और अन्ततः हमारे मनोजगत् के अजित एवं सजित भावों का ही संसार है। __ मन्त्रों को और विशेषकर इस महामन्त्र को यदि हम पारलौकिक शक्ति से न भी जोड़ें तो भी इतना तो हमें मानना ही होगा कि हमें चित्त की स्थिरता, दृढ़ता और अपराजेयता के लिए स्वयं में ही गहरे उतरना होगा और दूसरों के गुणों और अनुभवों से कुछ सीखना होगा। बस महामन्त्र से हम स्वयं की शक्तियों को अधिक बलवती एवं चैतन्य युक्त बनाने की प्रेरणा पाते हैं। मन्त्र हमारा आदर्श है हमारी भीतरी शक्तियों को जगाने और क्रियाशील बनाने वाला।
हम अपने नित्यप्रति के संसार में जब किसी बीमारी, राजनीतिक संकट, शीलसंकट, पारिवारिक संकट एवं ऐसे ही अन्य संकटों से घिर जाते हैं और घोर अकेलेपन का, असहायता का अनुभव करते हैं, तब हम क्या करते हैं ? रोते हैं, चीखते हैं और कभी-कभी घुटकर आत्महत्या भी कर लेते हैं। या फिर राक्षस भी बन जाते हैं। पर ऐसी स्थिति में एक और विकल्प है अपने रक्षकों और मित्रों की तलाश । अपनी भीतरी ऊर्जा की तलाश। हम मित्रों को याद करते हैं, पुलिस की सहायता लेते हैं-आदि-आदि। इसी अकेलेपन के सन्दर्भ में सहायता और आत्म-जागरण की तलाश में हम अपने परम पवित्र ऋषियों,