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________________ R 152 2 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण दूसरे अभी दो-तीन माह का जिकर है कि जब मेरी विरादरी बालों को मालूम हुआ कि मैं जैन मत पालने लगा हूं, तो उन्होंने एक सभा को, उसमें मुझे बुलाया गया। मैं जखोरा से झांसी जाकर सभा में शामिल हुआ। हर एक ने अपनी-अपनी राय के अनुसार बहुत कुछ कहा-सुना और बहुत से सवाल पैदा किए, जिनका कि मैं जवाब भी देता गया। बहुत से महाशयों ने यह भी कहा कि ऐसे आदमी को मार डालना ठीक है। अपने धर्म से दूसरे धर्म में, यह न जाने पाए। अन्त में सब चले गए। मैं भी अपने घर आ गया। जब शाम का समय हुआयानी सूर्य अस्त होने लगा तो मैंने सामायिक करना आरम्भ किया और जब सामायिक से निश्चिन्त होकर आंखें खोली तो देखता हूं कि एक बड़ा सांप मेरे आस-पास चक्कर लगा रहा है और दरवाजे पर एक बर्तन रखा हआ मिला, जिससे मालूम हुआ कि कोई इसमें बन्द करके छोड़ गया है। छोड़ने वाले की नीयत एक मात्र मुझे हानि पहुंचाने की थी। लेकिन उस सांप ने मुझे नुकसान नहीं पहुंचाया। मैं वहां से डरकर आया और लोगों से पूछा कि यह काम किसने किया है, परन्तु कोई पता न लगा। दूसरे दिन जब सामायिक के समय पड़ोसी के बच्चे को सांप ने डस लिया तब वह रोया और कहने लगा कि हाय मैंने बुरा किया कि दूसरे के वास्ते चार आने देकर जो सांप लाया था, उसने मेरे बच्चे को काट लिया। बच्चा मर गया। पन्द्रह दिन बाद वह आदमी भी मर गया। देखिए सामायिक और णमोकार मन्त्र कितना जबरदस्त स्तम्भ है कि आगे आया हुआ काल भी प्रेम का बर्ताव करता हुआ चला गया।" . 'तीर्थकर' पत्रिका के णमोकार मन्त्र विशेषांक-2, जनवरी 1981 से कतिपय उद्धरण प्रस्तुत हैं। इन उद्धरणों से कुछ प्रामाणिक साधुओं, मुनियों, विद्वानों एवं गृहस्थों की प्रखर स्वानुभूतियों की जानकारी मिलती है-- 1. प्यास शान्त हुई-स्व० गणेश प्रसाद जी वर्णी जब दूसरी बार सम्मेद शिखर की यात्रा पर गए, तब परिक्रमा करते समय उन्हें बड़ी जोर को प्यास लगी। उनका चलना मुश्किल हो गया। वे णमोकार मन्त्र का स्मरण करते हुए भगवान को उलाहना देने लगे कि प्रभो,
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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