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________________ महामन्त्र णमोकार अर्थ, व्याख्या (पदक्रमानुसा ) 129.8 यात अवश्य रही होगी। विद्वानों ने इस पर विचार किया है और समाधान भी प्राप्त किया है। निश्चय नय की दृष्टि से तो सिद्ध परमेष्ठी ही क्रम में प्रथम आते हैं परन्तु अरिहन्तों के द्वारा ही जनसमुदाय को उपदेश का लाभ होता है और मुक्ति का मार्ग खुलता है, सिद्धों से इस बात में वे आगे हैं। दूसरी बात यह है कि अरिहन्तों के कारण सिद्धों के प्रति लोगों में अधिक श्रद्धा उत्पन्न होती है। अतः उपकार की अपेक्षा से ही अरिहन्तों को प्राथमिकता दी गयी है। पंच परमेष्ठियों पर वास्तविक गुणों के धरातल पर विचार किया जाए तो अरिहन्त और सिद्ध तो आत्मोपलब्धि के निश्चय के कारण साक्षात् देव कोटि (प्रभु कोटि) में आते हैं। शेष तीन परमेष्ठी अभी साधक मात्र हैं अतः वे गुरु कोटि में आते हैं। ये तीन तो अभी अरिहन्त एवं सिद्ध के उपासक हैं और गृहस्थों एवं श्रावकों द्वारा पूज्य हैं। इसी प्रकार दूसरी शंका यह उठती है कि साधु परमेष्ठी आचार्य और उपाध्याय से श्रेष्ठ हैं क्योंकि आचार्य और उपाध्याय साधु अवस्था धारण करके ही मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं और अभी वे साधु नहीं हैं। यहां ध्यान फिर द्रव्य और भाव पक्ष पर देना है। मुनि या साध को उपदेश देने का कार्य आचार्य एवं उपाध्याय ही करते हैं । अतः इसो भाव या अन्तरंग पक्ष का ध्यान रखकर उक्त क्रम रखा गया है। ज्ञान के धरातल पर उपाध्याय आचार्य से भो आगे होते हैं परन्तु आचार्य परमेष्ठी द्वारा प्रकट शासन व्यवस्था और धार्मिक संघों का चरित्र पालन होता है अतः उन्हें इसी उपकार एवं व्यवहार भावना के कारण उपाध्याय से पहले स्थान दिया गया है। डॉ. नेमीचन्द ज्योतिषाचार्य का विचार भी पदक्रम के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण एवं विश्वसनीय है-'ऐसा प्रतीत होता है कि इस महामन्त्र में परमेष्ठियों को रत्नत्रय गुण की पूर्णता और अपूर्णता के कारण दो भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम विभाग में अरिहन्त और सिद्ध हैं। द्वितीय विभाग में आवार्य उपाध्याय और साधु हैं। प्रथम विभाग में रत्नत्रय गुण की न्यूनता वाले परमेष्ठी को पहले और रत्नत्रय गुण की पूर्णता वाले परमेष्ठी को पश्चात् रखा गया है। इस क्रम के अनुसार
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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