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8.1303 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
अरिहन्त को पहले और सिद्ध को बाद में पठित किया गया है। दूसरे विभाग में भी यही क्रम है। आचार्य और उपाध्याय की अपेक्षा मुनि का (साधु का) स्थान ऊंचा है; क्योंकि गुगस्थान आरोहण मुनिपद से ही होता है, आचार्य और उपाध्याय पद से नहीं। यही कारण है कि अन्तिम समय में आचार्य और आध्याय को अपना-अपना पद छोड़कर मुनिपद धारण करना पड़ता है। मुक्ति भी मुनिपद से ही होती है तथा रत्नत्रय की पूर्णता इसी पद में सम्भव है। अतः दोनों विभागों में उन्नत आत्माओं को पश्चात् पठित किया गया
विचार करने पर यह समाधान उतना ही विश्वसनीय एवं तर्काश्रित नहीं लगता जितना कि यह तर्क कि परमेष्ठियों के वर्तमान पदक्रम में लोकोपकार भाव को अग्रिमता के कारण ही मौजदा क्रम अपनाया गया है । आत्मकल्याण और लोकोपकार को दृष्टि में रखकर यह क्रम अपनाया गया है। बात यह है कि वर्तमान क्रम की सार्थकता, महत्ता आर औचित्य में कोई-न-कोई ठोस कारण जो विश्वसनीय हो, होना ही चाहिए।
महामन्त्र णमोकार और मातृकाओं का सम्बन्ध
वर्णमातका के स्वरूप और महत्त्व पर संक्षेप में इतःपूर्व इंगित किया जा चुका है। अक्षर, वर्ण एवं शब्द रूप में मातृका शक्ति का विस्तार है। हमारे समस्त जीवन में यह शक्ति कार्य करती है। जब तक हम इसे जानते नहीं हैं और संकल्पपूर्वक इसका प्रयोग नहीं करते हैं, तब तक अनुकूल फल सम्भव नहीं होता है।
णमोकार महामन्त्र में समस्त मातृका शक्ति का प्रयोग हुआ हैं। अन्य किसी भी मात्र में यह बात नहीं है। यह इस महामन्त्र को अद्भुत विशेषता है। इससे भी इस मन्त्र का लोकोत्तरत्व सिद्ध होता है। पदक्रम के अनुसार मातृका विश्लेषण
• मगलमन्त्र णमोकार-पृ० 56