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2 122 3 महामन्त्र गमोकार: एक वैज्ञानिक अन्वेषण होगा। अतः सिद्ध परमेष्ठी को सर्वोपरि महत्ता स्वयंसिद्ध है। आचार्य हेमचन्द्र का महामन्त्र के प्रति यहः भाव वास्तव में सिद्ध सन्दर्भ में ध्यातव्य है
"हरइ दुहं, कुणइ सुहं, जणइ जसं सोमए भव समुदं । इह लाह. परलोकय-सुहाण मूलं णमुक्कारो॥" अर्थात् महामन्त्र णमोकार दुखहर्ता एवं सुखदाता है। यश उत्पन्न करता है, भव समुद्र को सुखाता है। यह मन्त्र इस लोक एव परलोक में सुखों का मूल है।
सिद्धों के सम्बन्ध में एक बात और ध्यान देने की है-सामान्यतया कुल सात रंग माने जाते हैं-लाल, नीला, पीला, नारंगी, हरा, नीलाबैंगनी, बैंगनी (वायलेट)। इनमें कुल तीन ही मूल रंग हैं-लाल, नीला, पीला। बाकी रंग इन रंगों के मिश्रण से बनते हैं। आश्चर्य यह है.कि सफेद और काला रंग भी मिश्रण से बनता है, मौलिक नहीं हैं। मिश्रण से तो फिर सहस्रों रंग बनते हैं। उक्त तीन मूल रंगों में भी लाल रंग ही प्रमुख है। वही ऊष्मा और जीवन का रंग है। यही सिद्ध परमेष्ठी का रंग है। अतः इस स्तर पर भी सिद्धों की सर्वोपरि महत्ता प्रकट होती है। गमो आइरियाणं
आचार्य परमेष्ठियों को नमस्कार हो। जिनके मन, वचन और आचरण में एकरूपता है, वे ही विश्व-जीवों के उद्धारक-पथ-प्रदर्शक आचार्य हैं। ये आचार्य स्वयं के आचरण में ज्ञान को परीक्षित एवं पवित्र करके ही प्राणियों को संयम, तप एवं ज्ञान का उपदेश देते हैं। वास्तव में आचार्य परमेष्ठी अपने आचरण द्वारा ही प्रमुख रूप से जीवों में स्थायी आध्यात्मिक गुणों का संचार करते हैं। आचार्य परमेष्ठी के निजी आचरण द्वारा ही उनके निर्मल विचार प्रकट होते हैं। ये उपदेश
1. "ण मो नमस्कारः पंचविधमाचारं चरन्ति चारयन्तीत्याचार्याः।"
धवला टीका प्रथम-प.48