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________________ 1182 महामन्त मोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण परमेष्ठी की गरिमा प्राथमिकता और अतिशयता सिद्ध करने में भी ऐसा हुआ भी है । इस पर दृष्टिपात आवश्यक है। "जिसके आदि में अकार है, अन्त में हकार है और मध्य में बिन्दु सहित रेफ है वही (अहं) उत्कृष्ट तत्त्व है। इसे जानने वाला ही तत्वज्ञ है।"1 अरिहन्त परमेष्ठी वास्तव में एक लोक-परलोक के संयोजक सेतु परमेष्ठी हैं। ये स्वयं परिपूर्ण हैं, प्रेरक हैं और हैं जीवन्मुक्त। अरिहन्त परमेष्ठी स्वयं तप, आराधना एवं परम संयम का जीवन व्यतीत करते हैं अतः सहज ही भक्त का उनसे तादात्म्य-सा हो जाता है और अधिकाधिक श्रद्धा उमड़ती है। अरिहन्त जीव दया और जीवकल्याण में जीवन का बहुभाग व्यतीत करते हैं। वास्तव में णमोकार मन्त्र का प्रथम पद ही उसकी आत्मा है-उसका प्राणाधार है। अरिहन्त विशेष रूप से वन्दनीय इसलिए हैं क्योंकि वे प्राणी मात्र की विशद्ध अवस्था के पारखी हैं और इसी आधार पर 'आत्मवत् सर्वभूतेष' तथा 'भित्ती में सब्बभूदेषु' उनकी दिनचर्या में हस्तामलकल झलकते हैं-दिखते हैं। अरिहन्त की विराटता और जीव मात्र से निकटता इतनी अधिक है कि आज केवल अर्हत में ही पंच परमेष्ठी के गभित कर लेने की बात जोर पकड़ती जा रही है। अर्हत सम्प्रदाय की वर्धमान लोकप्रियता और देश-विदेश में उसकी नवचैतन्यमयी दृष्टि का प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है। अंहंत नाद, अर्थ, आसन, ध्यान, मंगल, जप आदि के स्तर पर भी पूर्णतया खरे उतर चुके हैं। अहंत में अ से लेकर सम्पूर्ण मूलभूत का समाहार हो जाता है। अतः समस्त मन्त्र मातृकाओं के अर्हत में गर्भित होने से इसकी स्वयं में पूर्ण मन्त्रात्मकता सिद्ध होती है। अरिहन्त ही मूलतः तीर्थंकर होते हैं। तीर्थंकरों में अतिशय और धर्मतीर्थ प्रवर्तन की अतिरिक्त विशेषता पायी जाती है अतः वे अरिहन्त तीर्थंकर कहलाते है। "राग द्वेष और मोह रूप त्रिपुर को नष्ट करने के कारण त्रिपुरारि, संसार में शान्ति स्थापित करने के कारण शंकर, नेत्रद्वय और केवलज्ञान ६. संसार के समस्त पदार्थों को देखने के कारण त्रिनेत्र एवं कर्म विचार को जीतने के कारण कामारि के रूप में अर्हत् परमेष्ठी मान्य होते हैं।"* • मंगल मन्त्र पमोकार : एक अनुचिन्तन-पृ. 41
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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