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महामन्त्र गर्मीकार अर्थ, व्याख्या (पदक्रमानुसार) : 119 : पंचाध्यायीकार नै अरिहन्त की सबसे बड़ी विशेषता उनके लोकोपकारी एवं धर्मोपदेशक होने में मानी है।
"दिव्यौदारिक दें हस्थो धोतघाति चतुष्टयः ।
ज्ञानदृग्वीर्य सौख्यादः सोऽर्हन धर्मोपदेशकः॥" महामन्त्र है, इसे प्रमुख रूप से आध्यात्मिक जिजीविषा के लिए माना जाता है। इसमें चमत्कार को कोई स्थान नहीं है। "जो णमोकार मन्त्र' की साधना नहीं कर सकते उन्हें चमत्कार की भाषा ही समझ में आती है। साधना करने के बाद जव अनुभति हो जाती है तो मनुष्य को अन्दर में ही शक्ति का अनुभव होने लगता है। चमत्कार अरिहन्त परम्परा के विरुद्ध है क्योंकि अरिहन्त की परम्परा में धारणा के द्वारा सप्रविजयस्वत: हो जाती है। धारणा और ध्यान इनका मूल कारण है।"..."अरिहंताणं में दो प्रकार की साधना की जाती है। एक अ, र-कंठ से नाभि की ओर, और फिर हं-शुरू करो-कण्ठ से नाभि तक जाओ। फिर बाद में सुषुम्ना के बीच तक। कण्ठ से नाभि तक फिर नाभि से सुषुम्ना तक शुद्ध करके मस्तिष्क तक पहुंचना, फिर इस शरीर में यात्रा करना, यह जो तरीका है, यही सिद्धि का रास्ता है। इसमें चमत्कार जैसी कोई बात नहीं है।"
मन्त्र को प्रभाव प्रक्रिया
जिस प्रकार औषध का हमारे शरीर परः रासायनिक प्रभाव पड़ता है उसी प्रकार मन्त्र का भी पड़ता है। मन्त्र का प्रभाव शरीर को पार कर, चैतन्यशक्ति पर भी पड़ता है। धीरे-धीरे हमारे मन को कसने वाली, दबोचने वाली प्रवृत्तियां क्षीण होकर समाप्त हो जाती हैं । मन्त्र का प्रत्येक अक्षर चिन्तन, मृदु.उच्चारण एवं दीर्घ उच्चारणों के आधार पर प्रभाव क्रम पैदा करता है।
हमारी चेतना के प्रमुख तीन प्रवाह केन्द्र हैं- इडा, पिंगला और सुषुम्ना । वास्तव में ये तीन श्वास-स्वर हैं। इडा बायां स्वर है, पिगला दायां स्वर है और सुषुम्ना मध्य स्वर है। बायां और दायां स्वर ही
1. पञ्चाध्यायी, अ० 2 2. तीर्थकर, दिस० 1980-१० 100-मुनि सुशील कुमार जी