________________
४९
अब निहारें परमाणु-जगत् का ताण्डव-नृत्य होते हैं। तात्पर्य यह है कि वे मिट्टी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रसकायिक जीवों के शरीर या शरीर-मुक्त पुद्गल हैं।
दूसरी दृष्टि से देखें तो स्थूल स्कन्ध वे ही हैं जो विस्रसा परिणाम से औदारिक आदि वर्गणा के रूप में सम्बद्ध होकर प्राणियों के स्थूल शरीर के रूप में परिणाम अथवा उससे मुक्त होते हैं। वैशेषिकों की तरह जैन दर्शन में पृथ्वी, पानी आदि के परमाणु पृथक् लक्षण वाले नहीं हैं। इन सबमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण-ये सभी गुण रहते हैं। पुद्गल की गति
परमाणु स्वयं गतिशील है। वह एक क्षण में लोक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक, जो असंख्य योजन की दूरी पर है, चला जाता है। गति-परिणाम उसका स्वाभाविक धर्म है। धर्मास्तिकाय उसका प्रेरक नहीं, मात्र सहायक है। गति का उपादान परमाणु स्वयं है। धर्मास्तिकाय तो उसकी गति करने में सहायक होता है, निमित्त बनता है। : परमाणु सैज (सकम्प) भी होता है और अनैज (अकम्प) भी। कम्पन • (Vibrations) परमाणु की स्वाभाविक गति (motion) का एक रूप है।
कदाचित् वह चंचल होता है, कदाचित नहीं। उसमें न तो निरन्तर कम्पभाव रहता है और न निरन्तर अकम्प-भाव भी।
___ द्वयणुक स्कन्ध में कदाचित् कम्पन, कदाचित अकम्पन होता है। वह द्वयंश (दो अंश वाला) होता है, इसलिए उसमें देश-कम्प और देश-अकम्प ऐसी स्थिति भी होती है।
इसी प्रकार त्रिप्रदेशी, चतुःप्रदेशी, आदि से लेकर अनन्त प्रदेशी तक से स्कन्धों में कम्प-अकम्प के अनेक विकल्प बनते हैं। ये विकल्प आधुनिक गणित-शास्त्र में प्रयुक्त क्रमचय और संचय (Permutations and Combinations) की विधि का अच्छा उदाहरण है। पुद्गल की अवस्थाएँ
परमाणुओं के एकीकरण या पृथक्करण के परिणामस्वरूप जो पुद्गल स्कन्ध बनते हैं, उनकी मुख्य दस अवस्थाएँ उपलब्ध होती हैं, जो पुद्गल के ही गुणधर्म या कार्य हैं१. शब्द (Sound)
२. बन्ध (Fusion) ३. सौक्ष्मय (Subtlety) ४. स्थौल्य (Grossness)