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________________ अब निहारें परमाणु-जगत् का ताण्डव नृत्य पुद्गल कब से और कब तक ४५ प्रवाह की अपेक्षा से स्कन्ध और परमाणु अनादि- अपर्यवसित है, कारण कि इनकी सन्तति अनादिकाल से चली आ रही है और चलती रहेगी। स्थिति की अपेक्षा से यह सादि- सपर्यवसन भी है । जैसे परमाणुओं से स्कन्ध बनता है और स्कन्ध-भेद से परमाणु बन जाते हैं । I परमाणु परमाणु के रूप में और स्कन्ध स्कन्ध के रूप में रहें तो कम से कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात काल तक रह सकते हैं। बाद में तो उन्हें बदलना ही पड़ता है । यह इनकी काल - सापेक्ष स्थिति है । क्षेत्र - सापेक्ष स्थिति — परमाणु अथवा स्कन्ध में एक क्षेत्र में रहने की स्थिति भी यही है । परमाणु स्कन्धरूप में परिणत होकर फिर परमाणु बनने में कम-से- -कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात काल लगता है और द्वयणुकादि स्कन्धों के परमाणु रूप में अथवा ऋणुकादि स्कन्ध रूप में परिणत होकर फिर मूल रूप में आने से कम-से-कम एक समय और अधिक-से-अधिक अनन्त काल लगता है । एक परमाणु अथवा स्कन्ध जिस आकाश - प्रदेश में थे और किसी कारणवश वहाँ से चल पड़े, फिर आकाश-प्रदेश में उत्कृष्टतः अनन्त काल के बाद और जघन्यत: एक समय के बाद ही आ पाते हैं । परमाणु आकाश के एक प्रदेश में ही रहते हैं । स्कन्ध के लिए यह नियम नहीं है । वे एक, दो, संख्यात, असंख्यात प्रदेशों में रह सकते हैं, यावत् समूचे लोकाकाश तक भी फैल जाते हैं। समूचे लोक में फैल जाने वाला स्कन्ध 'अचित्त महास्कन्ध' कहलाता है 1 पुद्गल का अप्रदेशित्व और सप्रदेशित्व द्रव्य की अपेक्षा से― स्कन्ध सप्रदेशी होते हैं । क्षेत्र की अपेक्षा से स्कन्ध सप्रदेशी भी होते हैं और अप्रदेशी भी । जो एक आकाश प्रदेशावगाही होता है अर्थात् आकाश के एक प्रदेश में ठहरने वाला होता है. वह अप्रदेशी और जो दो आदि आकाश-प्रदेशावगाही होता है वह सप्रदेशी । काल की अपेक्षा से—जो स्कन्ध एक समय की स्थिति वाला होता है वह अप्रदेशी और जो इससे अधिक स्थिति वाला होता है वह सप्रदेशी । भाव की अपेक्षा से - एक गुण ( unit ) वाला स्कन्ध अप्रदेशी और अधिक गुण वाला सप्रदेशी होता है । द्रव्य और क्षेत्र की अपेक्षा से परमाणु अप्रदेशी होते हैं । काल की अपेक्षा से. एक समय की स्थिति वाला परमाणु अप्रदेशी और अधिक समय की स्थिति
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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